सुन मीता मेरे
चुक जाय जब मसि मेरी लेखनी में
मेरे बीते अक्षर पढ़ना।
अनमना हूँ पर हूँ तुम्हारे साथ सर्वदा
तुम मेरी कहानी कहना।
तुम्हारा कहना
खुलना होता है तिरस्करिणी का
मुझे दिखता है वह जिसे तुम ईश्वर कहते हो
खिलते हैं उन क्षण अनकहे हरित से कुछ
मैं होता हूँ स्तब्ध
चुप रहूँ तो मुझे निज शब्द सुनना
मीता मेरे!
वही है वह प्रार्थना जो तुम हो मेरे लिये
चुक जाय जब मसि मेरी लेखनी में
मेरे बीते अक्षर पढ़ना।
अनमना हूँ पर हूँ तुम्हारे साथ सर्वदा
तुम मेरी कहानी कहना।
तुम्हारा कहना
खुलना होता है तिरस्करिणी का
मुझे दिखता है वह जिसे तुम ईश्वर कहते हो
खिलते हैं उन क्षण अनकहे हरित से कुछ
मैं होता हूँ स्तब्ध
चुप रहूँ तो मुझे निज शब्द सुनना
मीता मेरे!
वही है वह प्रार्थना जो तुम हो मेरे लिये
बस संवाद रहे जीवन में,
जवाब देंहटाएंशब्द रहे, स्तब्ध सदा ही।
वाह!! कितने दिन बाद आचार्य!!
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