गुरुवार, 25 जुलाई 2013

बस स्टॉप पर लड़की



2013-07-25-767
उछालती हैं गाड़ियाँ
धूल दिन भर
पथ की पटरी पर
सनती है स्वच्छ स्निग्ध टाइल
पिल्ले तक नहीं बैठते।

प्रात:काल बस स्टॉप पर
धूल सनी पटरी से लगे
बोझ उठाये हम रहते हैं
सहमे से खड़े
बैठें कैसे? होंगे कपड़े मैले।

वह आती है
लाल साँवली लड़की
बस्ता पीठ पर लादे
हाथों में लिये पुराने पेपर।
हमें देख मुस्कुराती है
बिछाती है
करीने से पुराने पेपर
धूल सनी टाइलों पर।
दब जाती है एलर्जी धूल
उसके चेहरे से झरते हैं अनुरोध फूल
बस्ता रख सब बैठ जाते हैं
तब वह बैठती है
मुस्कुराती करती है प्रतीक्षा बस की,
आने जाने वालों को देखते हुये।

यह रोज का मामला है -
सँवारती हैं, सहूलियतें लाती हैं
मुस्कुराती लड़कियाँ
आँचल फैलाती
चुपचाप स्त्रियाँ
और जिन्दगी यूँ ही चली जाती है।

पथ की धूल सनी पटरी पर
बासी इबारतें बिछाती हैं
ठाँव के लायक बनाती हैं
मुस्कुराती हैं
स्टॉप पर लड़कियाँ!

3 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा क्या...! ये तो ग़जब की बात है। जिन्दाबाद-जिन्दाबाद ऐसी लड़की के लिए।

    रिपोर्ट अच्छी प्रेरणा देती है।
    ओहो, आप आजकल बनारस में हैं।

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  2. लड़कियाँ
    रहती हैं सावनधान
    ध्यान देती हैं
    छोटी-छोटी बातें भी
    लड़के
    रहते हैं लापरवाह

    पहले दिन के बाद से ही
    सीख लिया होगा लड़की ने
    बिछाना बासी अखबार

    हमने देखा
    अचंभित हुए
    लिख दी कविता
    रहे वही
    लापरवाह के लापरवाह
    सदियों के।


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