इस ठंड की आदत नहीं ये आनी जानी है
शिकायतों सिसकियों में बस यही आसानी है।
ठिठुरते आह भरते हम सिहरते हैं
गुलदश्ते आते जाते हैं हम बस वैसे ही रहते हैं
कालिख पुते चेहरे पर पंखुड़ियाँ सजानी हैं
गिरें धूल में कुचलें पाँव तले यही कहानी है।
शिकायतों सिसकियों में बस यही आसानी है।
ठिठुरते आह भरते हम सिहरते हैं
गुलदश्ते आते जाते हैं हम बस वैसे ही रहते हैं
कालिख पुते चेहरे पर पंखुड़ियाँ सजानी हैं
गिरें धूल में कुचलें पाँव तले यही कहानी है।
जीवन में बरसों की जिल्लत समानी है,
जवाब देंहटाएं....बस यही कहानी है..
बस यही कहानी है......
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