विचारक -
गहन निशा में जब भूख तक सो जाती है
वे जगते हैं, आहट अकनते हैं
और
दिन में सुने किसी पागल के प्रलाप से
वे जगते हैं, आहट अकनते हैं
और
दिन में सुने किसी पागल के प्रलाप से
कुछ शब्द निकाल, जोड़, तोड़
एक भय रचते हैं।
उस भय के कारण हुये हृदयाघात से
वे मुर्दों में बदलते हैं।
उस भय के कारण हुये हृदयाघात से
वे मुर्दों में बदलते हैं।
योद्धा -
अफीम की पिनक में उठते हैं
बाँधते हैं मुर्दों की छातियों से निकाली
हड्डियों के कवच
हड्डियों के कवच
और निकालते हैं शब्दभेदी कठुवाये
शब्दअसि किंवा तलवार!
वार पर वार
वे उस भय से लड़ते हैं
उनकी तलवारें टिठुरती हवा को चीरती
सन्न सन्न करती हैं।
उन्हें ओस रक्त के छींटों सी लगती है
जिसे गर्म करने को वे चिल्लाते हैं
और यह सिद्ध करने को कि शत्रु थे
और युद्ध हुआ,
और भीषण हुआ;
वे तलवारें भोंक लेते हैं खुद में
और यूँ शहीद हो जाते हैं।
और यह सिद्ध करने को कि शत्रु थे
और युद्ध हुआ,
और भीषण हुआ;
वे तलवारें भोंक लेते हैं खुद में
और यूँ शहीद हो जाते हैं।
क्रांतिकारी-
सामंती सुघरता से अलग
सुन्दर सधे कलात्मक अक्षरों में
पोस्टर बनाते हैं -
एक हाथ में विचारक पोस्टर
दूसरे हाथ में योद्धा पोस्टर
सुन्दर सधे कलात्मक अक्षरों में
पोस्टर बनाते हैं -
एक हाथ में विचारक पोस्टर
दूसरे हाथ में योद्धा पोस्टर
दीवारों पर चिपकाते पोस्टर
सड़क के बीच
स्वयं को शहीदों की आत्माओं से
जोड़ते हैं
और बोलते हैं धावा
उसी भय के विरुद्ध।
वे अपनी जान भर
स्वयं को शहीदों की आत्माओं से
जोड़ते हैं
और बोलते हैं धावा
उसी भय के विरुद्ध।
वे अपनी जान भर
अपनी रात भर
दौड़ते रहते हैं।
और मैं कैसे बताऊँ कि
तमाम विचारकों,
योद्धाओं और
क्रांतिकारियों के होते
हुये भी
क्रांति कभी हो क्यों नहीं पाती!
sabhi aise hi hote hain kya ? 100% ?
जवाब देंहटाएं... और
जवाब देंहटाएंइन सब के होने से
निश्चिंत
सोता है
चैन की नींद
अमृत्व का वरदान लिए
भय ...
जब तक एक थकता है तब कहीं जाकर दूसरा जगता है।
जवाब देंहटाएं