जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
लेकिन वो बात कहाँ होती?याद कहाँ होती?जो बस खिंच आई है ऐसे हीयह मुस्कान कहाँ होती? गजब कि पंक्तियाँ हैं ...बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...कभी 'आदत.. मुस्कुराने की' पर भी पधारें !!
काँटे तब भी होते फलियाँ तब भी होतीं ।वाह क्या कहने. सानिध्य के सामंजस्य की बात ही कुछ और होती है .
:)kehte hain shabdon main sab bayan nahi kiya ja sakta
सच में, वो बात कहाँ?
@जो बस खिंच आई है ऐसे ही यह मुस्कान कहाँ होती?...जीवन को गतिमान रखने की ऊर्जा यहीं से मिलती है.
राप्चिक कविता है जी...एकदम राप्चिक।
क्या होता जो हम न लिपटते?..इस एहसास को जीने के लिए खुद भी लिपटना तो पड़ता ही..
शानदार ए दोस्त !!!
मतलब ये कि जो उधर चल रहा है वो 'यादें' हैं. :)
कहाँ से बचाए रखे हैं इन अनुभूतियों को ! मौके पर ढेर कर देती हैं ! जियें सरकार ! ईर्ष्या होना स्वाभाविक है !
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंलेकिन वो बात कहाँ होती?
जवाब देंहटाएंयाद कहाँ होती?
जो बस खिंच आई है ऐसे ही
यह मुस्कान कहाँ होती?
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
कभी 'आदत.. मुस्कुराने की' पर भी पधारें !!
काँटे तब भी होते
जवाब देंहटाएंफलियाँ तब भी होतीं ।
वाह क्या कहने. सानिध्य के सामंजस्य की बात ही कुछ और होती है .
:)
जवाब देंहटाएंkehte hain shabdon main sab bayan nahi kiya ja sakta
सच में, वो बात कहाँ?
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जवाब देंहटाएंजो बस खिंच आई है ऐसे ही
यह मुस्कान कहाँ होती?
...जीवन को गतिमान रखने की ऊर्जा यहीं से मिलती है.
राप्चिक कविता है जी...एकदम राप्चिक।
जवाब देंहटाएंक्या होता जो हम न लिपटते?
जवाब देंहटाएं..इस एहसास को जीने के लिए खुद भी लिपटना तो पड़ता ही..
शानदार ए दोस्त !!!
जवाब देंहटाएंमतलब ये कि जो उधर चल रहा है वो 'यादें' हैं. :)
जवाब देंहटाएंकहाँ से बचाए रखे हैं इन अनुभूतियों को ! मौके पर ढेर कर देती हैं ! जियें सरकार ! ईर्ष्या होना स्वाभाविक है !
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