(1)
तुम्हारी लम्बी बीमारी
अरगनी पर टँगे सूखते सूखे कपड़ों सी।
नहीं हटा पाया उन्हें, भीगने भिगोने का डर है।
(2)
कपड़ों में भीनी ओस
रोज उड़ जाती है गुनगुनी धूप में ही।
कोई ठौर नहीं, मेरे आँसू बस उमड़ते रहते हैं।
(3)
तुम पूछने लगी हो अब
रोटियाँ नमकीन क्यों लगती हैं?
क्या कहूँ? आँसू बस रसोई में बरसते हैं!
bhav poorna kavita........ati uttam
जवाब देंहटाएंरोटियाँ नमकीन क्यों लगती हैं?
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ? आँसू बस रसोई में बरसते हैं!
अति सुन्दर!
सच्ची बात लग रही है ये रचना. कल्पना कम... आस पास का ज्यादा.
जवाब देंहटाएंरोटियाँ नमकीन क्यों लगती हैं?
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ? आँसू बस रसोई में बरसते हैं!
बड़ी वजनदार पंक्त्यियाँ.
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जवाब देंहटाएंबिम्बों का इतना बेहतरीन इस्तेमाल है कि वाह वाह कहने भर से काम नही चलेगा , इन बिम्बों के नये अर्थ ग्रहण करने ही होंगे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता। इतने कम शब्दों में इतनी गहरी बात, इतने सुंदर बिंब!
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहूँ--
जवाब देंहटाएंप्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
बाँध देती है
तुम्हारा मन, हमारा मन ,
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-
डूबकर
मिलती मुझे राहत बड़ी !
(स्व० धर्मवीर भारती जी की पंक्तियाँ )
हृदय भिगोती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक ...!
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