"तुम्हें पढ़ना चाहता हूँ"
"मैं अन्धी हो चुकी हूँ"
"तुम्हें लिखना चाहता हूँ"
"मेरे हाथ अब काँपते हैं"
"तुम्हें छूना चाहता हूँ"
"मेरे अंग गलित हैं"
"इस बार मेरे की जगह तुम्हारे कहना था"
"एक ही बात है।
पढ़ना, लिखना, छूना सब बेमानी हैं
अपने भीतर झाँक लो, सब हो जाएगा"
"तुम नहीं सुधरोगी"
"तुम भी तो नहीं सुधर पाए"
"हाँ, कुछ है जो कभी नहीं बदलता "
"दुनिया उसी से कायम है"
उसकी बादशाहत रहने दी जाये।
जवाब देंहटाएंअच्छा है।
जवाब देंहटाएंआपका अंदाज़ अलहदा है...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत..!
sch khaa duniyaa pyar mohbbt vishvaas dhokhe or dushmni pr hi qaaym he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं" कुछ है जो कभी नहीं बदलता "
जवाब देंहटाएंशायद इसी को शाश्वत सत्य कहा गया है.
द्वैध का प्रेत क्यों बन जाते हैं ये रिश्ते
जवाब देंहटाएंअलहदा धूनी रमाये रहिये ! कविता बढ़िया है !
जवाब देंहटाएंाच्छा है कुछ तो है जो नही बदलता नही तो आप कैसे इतनी रचनायें लिख पाते। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकविता का शिल्प नया-नया सा लगा...अति सुंदर।
जवाब देंहटाएंअब घर से लौट आये तो तनिक प्रेम कथा को भी आगे ठेलिए.
जवाब देंहटाएंduniya usi se kayam hai...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअनकहा भी कह दिया आखिरी पंक्ति में.