प्रस्तुत कविता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" की अति प्रसिद्ध रचना है. उऩ्हें अद्भुत काव्यशक्ति के कारण "महाप्राण" भी कहा जाता है.
प्रसंग है: राम की रावण के हाथों प्रथम पराजय, जनित निराशा, आत्म निरीक्षण, प्रेरणा, शक्ति की नई मौलिक कल्पना, तमाम विघ्न वाधा के बावज़ूद तप और अंत में शक्ति का नवोन्मेष.
आठ आठ मात्राओं के तीन चरणों वाले छ्न्द में लिखी इस कविता में 24 वर्णों के वैदिक गायत्री छंद की गरिमा और औदात्त्य है. पूरी कविता महाकाव्य जैसा विराट कैनवस लिए है. प्रस्तुत अवतरण में प्रारम्भ के अंश हैं जो आलोचित भी हुए और कइ गुने प्रशंसित भी. युद्ध के कोलाहल और घात प्रतिघात के क्षणों को कवि ने महाप्राण और अर्ध स्वरों के प्रयोग द्वारा बखूबी सँजोया है. यदि आप को इसके नाद सौन्दर्य का अनुभव करना है तो कमरा बंद कर थोड़े तीव्र स्वरों में लगभग आठ मात्राओं पर यति देते हुए वैदिक बलाघात के ताल पर गाने का प्रयास करिए.
मेरे तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सोचता हूँ कि पखावज और धमाल ताल पर वनराज भाटिया का संगीत हो और शुभा मुद्गल इसे गाएँ तो कैसा हो !
रवि हुआ अस्त ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।
आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह,
विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,
लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान,
राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,
उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,
अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव,
विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव,
रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल,
मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल,
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध,
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध,
उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर,
जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर।
लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।
(कविता आभार: राजकमल पेपरबैक)
राम की शक्ति पूजा हिंदी की श्रेष्ठतम कविताओं में से एक है। इसमें राम की कथा के साथ-साथ निराला की कथा में उतनी ही मात्रा में है।
जवाब देंहटाएंमुझे यह कविता इसलिए पसंद है क्योंकि यह एक घोर आशावादी कविता है। राम अपनी निराशा पर विजय पाने के बाद ही शक्ति को पा पाते हैं और रावण पर विजय भी। इसी तरह निराला भी दूसरों द्वारा उन पर किए गए लांछनों पर कुढ़ते न रहकर अपने कलम के प्रहारों से सब लांछनों को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं। इसीलिए उन्हें महाप्राण कहा जाता है। वे कोई साधारण जीव नहीं थे।
आजकल के युवकों के लिए यह कविता प्रेरणा और उत्साहवर्धन का अजस्र स्रोत बन सकती है।
उनकी इस कविता का रिकोर्डिंग का ख्याल बहुत अच्छा है। यदि ऐसा हो सके तो बात ही क्या हो। बच्चन की कविताओं के रिकोर्ड आ चुके हैं, निराला के भी जरूर आने चाहिए।