मित्रों और मित्रियों! अधोभाग की कविताएँ वयस्कों के लिए है,बच्चों और बूढ़ों के लिए नहीं। 'परम' संस्कारवान लोगों के लिए भी नहीं हैं। संस्कारी लोगों के लिए(जो 'परम' से इतर हैं) प्रेमकथा बरोबर चल रही है। जे बात और है कि कइयों को वो मजनू का भौंड़ापन लगती है। ये कविताएँ उनके लिए भी नहीं हैं जो 'परम' पंडित हैं। ऐसे लोग जो एसी कमरे में बैठ कर किसी भी कवि की ऐसी तैसी करते हुए कविताओं को सहलाते रहते हैं, कृपया इन्हें न पढ़ें। देसज लोग ही इन्हें पढ़ें, वह भी अपने रिस्क पर! वे लोग भी पढ़ सकते हैं जिन्हें संझा भाखा, करकचही बोली, किचइन, औघड़ियों, जोगीड़ों और छायावादी पागलपन से घबराई गरम पकौड़ियों और खजोहरई की समझ है। ...न न ई कौनो रिएक्शन नहीं है। ऊ तो जब होगा तब होगा ही। असल में बाउ भी आजकल याद आने लगे हैं। तो... लस्टम पस्टम, ईश षष्टम,
दुर्बी दुलाम दुलच्छणम
भैंस चरे मसल्लमम।
कृपया इसे पढ़कर अपना दिल न दुखाएं! दुखने दुखाने के लिए और भी कई चीजें हैं।
अभी दुनिया दरिद्र नहीं हुई है, दिल को क्यों कष्ट देना?
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(1)
बड़े बड़े हैं छँटे कमीने
बाईं तरफ को गिरे कमीने
तशरीफ उठा कर झुके कमीने
शरीफ नहीं ये कवि कमीने
क्या बताऊँ क्यों हुए कमीने?
किस कमी ने किया कमीने?
(2)
बताव बबुनी! केकरा से कहाँ मिले जालू?
टोह लेत लेत भइल सूगर बेकालू
बताव बबुनी! केकरा से कहाँ मिले जालू?
अरे सूगर बेरामी कइसे भइल?
रामा कइसे भइल?
बजावत बजावत गाले गालू
बड़ी खइलीं हम भूजल कचालू।
वइसे भइल, रामा वइसे भइल
अब त बताइ द कहाँ मिले जालू?
(3)
ऊ हो बढ़िया तूहूँ बढ़िया
बढ़िया से जब मिल गए बढ़िया
हम हुए बुरधुधुर बढ़िया।