खिंचे कभी थे तार
आँख आँख प्रीत झर
थिर मौन सुगम गीत
बजते हर साँस पर।
रमी देह स्पर्श थाह
लाज सिमट ताख पर
प्रिय गन्ध लिपट प्रीत
ललच लाल लाभ पर।
मन सून लगे तन घून
तुम जा बैठी राख पर
उमड़ते गीत राग शीत
गाऊँ किस ताल पर?
घिर आये गीत मीत, छुयें बरसें किस अधर, रह गये थिर थर थर।