- मदन! मदन!!
मैं मर जाऊँगा।
- क्या हुआ साहब?
- कान में कीड़ा घुस गया है
तेज दर्द है, जैसे जान ही चली जाएगी।
-कहता हूँ कि साइट पर न रुका करो
देर रात तक। मेरी कोई सुने तब न!
- कुछ करो बेवकूफ !
- कान टेंढ़ा करो। कड़ुआ तेल डाल देता हूँ।
कीड़ा मर जाएगा। निकल आएगा।
.... बाद में....
साहब! आप कहते हैं न -
स्टोर में रसोई नहीं।
क्या होता आज
जो मान ली होती आप की बात?
वर्कर्स रेस्ट रूम से पिल्ले
आप ने फेंकवा दिए थे न?
सब लौट आये हैं - कुतिया के साथ।
कुछ बातें नहीं होतीं,
आप की किताब के हिसाब से -
मान लिया कीजिए।
कान में कीड़े घुसते हैं
हमेशा ग़लत समय।
उस समय काम आता है
कड़ुआ तेल
चौकीदार की रसोई का।
स्टोर में केवल सीमेंट नहीं
एक आदमी भी रहता है -
मान लीजिए।
मान लिया.............
जवाब देंहटाएंनियति को सिद्ध करने का हठ।
जवाब देंहटाएंशानदार। आपकी लेखनी क्या-क्या उगलेगी यह अनुमान लगाना असंभव है। बेहतरीन रचनाशीलता में लगे हैं आप।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है।
जवाब देंहटाएंस्टोर में केवल सीमेंट नहीं
जवाब देंहटाएंएक आदमी भी रहता है -
मान लीजिए।
गहन बातें मोती जिल्द की किताबों में ही हो, ऐसा बिलकुल भी आवश्यक नहीं। मान लिया, मानना ही था।
*मोती= मोटी
जवाब देंहटाएंपता नहीं .. कान में तेल पडा हो तो कीड़ा घुसाना ठीक रहेगा या नहीं... मेरी यह शंका व्यवस्था के सन्दर्भ में है :)
जवाब देंहटाएंस्टोर में केवल सीमेंट नहीं
जवाब देंहटाएंएक आदमी भी रहता है -
मान लीजिए।
मान लिया....आपके लेखन कौशल को काफी पहले से मानती आई हूँ,आज नव वर्ष में एक बार फिर सलाम कर लूं.नव वर्ष की शुभकामनाएं.