जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
आईना देखते डरने लगा हूँ,
कहीं नीचे मासूमियत झाँकती है।
उतारने को बड़प्पन का मुलम्मा
उसे घिसता हूँ साफ तौलिये से।
मुँह नहीं धोता
मेरे भीतर कहीं पानी मर गया है।
बहुत अच्छा. अत्र कुशलं तत्रास्तु के पश्चात्त विदित हो... कि मरे हुए पानी से मुंह नहीं धुलता...नहीं धुलता बड़प्पन का मुलम्मा...मरा हुआ पानी काम आता है संवेदनाओं के अंतिम संस्कार में... कि जब तक जीवित हैं संवेदनाएं अंदर का पानी मर नहीं सकता...कविता में कभी-कभी झूठ... चलता है, बिड़ु !
..वाह!
जवाब देंहटाएं..आईना तो सभी के पास है लेकिन कोई ठीक से देखना नहीं चाहता। बड़प्पन का मुलम्मा अपना मुंह धोने नहीं देता, आईना ही साफ करते रह जाता है।
bahut badiya
जवाब देंहटाएंआईना देखने ही बड़प्पन उड़ जाता है, दिखता है एक बच्चा, बड़प्पन का नकाब ओढ़े।
जवाब देंहटाएंगज़ब कर दिया ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ? कुछ कहने लायक छोड़ा कहाँ है आपने...कमाल की रचना...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंअत्र कुशलं तत्रास्तु के पश्चात्त विदित हो...
कि मरे हुए पानी से मुंह नहीं धुलता...नहीं धुलता बड़प्पन का मुलम्मा...मरा हुआ पानी काम आता है संवेदनाओं के अंतिम संस्कार में...
कि जब तक जीवित हैं संवेदनाएं अंदर का पानी मर नहीं सकता...कविता में कभी-कभी झूठ... चलता है, बिड़ु !
उतारने को बड़प्पन का मुलम्मा
जवाब देंहटाएंउसे घिसता हूँ साफ तौलिये से।
यह एक अनुभव प्रयोग लगा.बधाई एवं नववर्ष की शुभकामनाएं.
rav sahab, ek aur, aur ek bar aur,
जवाब देंहटाएंbehatreen rachna.
अब तो आइना ही मिलना मुश्किल होता जा रहा है। पोलिटिकली करेक्ट समाज में
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ?
जवाब देंहटाएंयह स्वीकारोक्ति क्या कम है?
यह शब्द प्रवाहित होते रहें।
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