सूख चले सोते मन खोह में
आह खोई जाने किस मोह में
सूखी तूलिका सब चित्र भूली
वीतराग मीत राग रहे टोहते।
शीत तृप्ति पाप नहीं बोध में
उलझना नहीं प्रेम के शोध में
रीता क्यों मन रिक्त रहे झूले
चपल डार चटक रह गये खोजते।
आ जाओ साँसों को चाहिये तपती अतृप्ति
छ्न्द गये छूट मौन मसि लिखूँ क्या सन्देश?
भाग रहे निमिष क्षण हर साथी है समझ संग
फिर एक बार बनूँ मूरख मिल जाओ तुम बस।
फूट पड़ें सोते
आह के स्वर तूलिका भिगोते।
उद्दाम काम राग चित्र
आसक्त हों शब्द शब्द
रच जाय बस जाय पुण्य राग।
सज जायँ झूले हम खूब झूलें
चटक जाय डार डार
जो पेंग भरें बार बार।
आ जाओ गीत!
राग रहे टोहते।