शनिवार, 15 जनवरी 2011

अध्यात्म कविता - 1


'धम्मपद' से ...  

अत्तानमेव पठमं पतिरूपे निवेसये। 
अथञ्ञमनुसासेय्य न किलिस्सेय्य पण्डितो

॥12-2, 158॥
पहले अपने को ही उचित (काम) में लगाये, अनन्‍तर दूसरे को उपदेश दे। इस प्रकार पण्डित क्लेश को न प्राप्त होगा। 

अत्तना'व कतं पापं अत्तना संकिलिस्सति। 
अत्तना अकतं अत्तना'व विसुज्झति। 
सुद्धि असुद्धि पच्चतं नाञ्ञो अञ्ञं विसोधये॥12-9, 165॥ 
अपना किया हुआ पाप अपने को मलिन करता है। अपना न किया पाप अपने को शुद्ध करता है। शुद्धि और अशुद्धि अपने ही से होती है। कोई अन्य अन्य को शुद्ध नहीं कर सकता।