सोमवार, 30 नवंबर 2009

दाल भात में मूसर चन्द


तुम्हारा घमण्ड आत्मविश्वास है
हमरा विश्वास भी दम्भ है।
तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
तुम लिक्खो तो नए प्रतिमान हैं
हम जो रचे तो लन्द फन्द है। 
मिठाई हमरी माछी भरी सूगर की बिमारी
तुम्हरी सीसे में सजी कलाकन्द है।
एक्के जगह बँधा रच्छासूत 
हमरा चिरकुट तुम्हरा कंगन बाजूबन्द है।
दम्भ
मूसर चन्द
लन्द फन्द
कलाकन्द
कंगन बाजूबन्द
तुकबन्दी में है लेकिन 
ऍब्सर्ड सा समुच्चय है न ? 
...
...
समझो
ये आदत छोड़ दो न ! 

14 टिप्‍पणियां:

  1. भैया खूब समझाये हो मुला लोग सम्झिहै तब न !

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या खूब सजाया.....


    तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
    हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।

    जवाब देंहटाएं
  3. वैसे दाल भात को कम न समझिये, आजकल दाल के दाम तो जानते ही हैं :)

    बाजूबंद खुल खुल जाय.....बाजूबंद खुल खुल जाय :)

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन शब्दों के साथ बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....

    जवाब देंहटाएं
  5. आप से भी अब क्या कहें ! शब्दों का क्या द्वन्द है ??
    जीभ तालू से चिपक गयी और मुंह भी देखिये बंद है
    अरे किसकी शामत आई है जो बोले ये लंद-फंद है
    अब विकार सब निकल जाएगा ये पूरा गुलकंद है

    वाह वाह...!! क्या लिखते हैं आप...जवाब नहीं आपका

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह वाह, सुभान अल्लाह! हमरे दिल की बात कह दी.

    हमरी दुआ भी गाली
    उनकी गाली कव्वाली
    हमरी जुबान काली
    उनकी सूरज की लाली

    जवाब देंहटाएं
  7. तुम्हारा घमण्ड आत्मविश्वास है
    हमरा विश्वास भी दम्भ है।
    तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
    हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।

    क्या बात है ......!!

    जवाब देंहटाएं
  8. तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
    हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
    तुम लिक्खो तो नए प्रतिमान हैं
    हम जो रचे तो लन्द फन्द है।

    कमाल तुकबंदी है ...समझने वाले समझ गए ...ना समझे वो अनाड़ी हैं ..!!

    जवाब देंहटाएं
  9. "एक्के जगह बँधा रच्छासूत
    हमरा चिरकुट तुम्हरा कंगन बाजूबन्द है।"

    यही तो समझना शेष रहा भईया । जय हो नाव-खेवईया !

    जवाब देंहटाएं
  10. जहां तुम, तुम होने; और हम हम होने का झमेला है, वहां यह अन्तरमयी कविता होना लाजमी है।
    पर यूं देखें कि एक ही मनई में घमण्डात्मक आत्मविश्वास और विश्वासात्मक दम्भ पाया जाता है।
    मैं ही अपने में सवर्ण और अपने में ही दलित हूं मित्र! बाहर क्या देखूं।

    जवाब देंहटाएं
  11. लेकिन यह जरूर है कि कविता वाली पोस्टों पर टिपेरना कठिन काम है!

    जवाब देंहटाएं