हमरा विश्वास भी दम्भ है।
तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
तुम लिक्खो तो नए प्रतिमान हैं
हम जो रचे तो लन्द फन्द है।
मिठाई हमरी माछी भरी सूगर की बिमारी
तुम्हरी सीसे में सजी कलाकन्द है।
एक्के जगह बँधा रच्छासूत
हमरा चिरकुट तुम्हरा कंगन बाजूबन्द है।
दम्भ
मूसर चन्द
लन्द फन्द
कलाकन्द
कंगन बाजूबन्द
तुकबन्दी में है लेकिन
ऍब्सर्ड सा समुच्चय है न ?
...
...
समझो
ये आदत छोड़ दो न !
भैया खूब समझाये हो मुला लोग सम्झिहै तब न !
जवाब देंहटाएंक्या खूब सजाया.....
जवाब देंहटाएंतुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
वैसे दाल भात को कम न समझिये, आजकल दाल के दाम तो जानते ही हैं :)
जवाब देंहटाएंबाजूबंद खुल खुल जाय.....बाजूबंद खुल खुल जाय :)
बहुत खु्ब-बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्दों के साथ बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
जवाब देंहटाएंwaah lajawab
जवाब देंहटाएंआप से भी अब क्या कहें ! शब्दों का क्या द्वन्द है ??
जवाब देंहटाएंजीभ तालू से चिपक गयी और मुंह भी देखिये बंद है
अरे किसकी शामत आई है जो बोले ये लंद-फंद है
अब विकार सब निकल जाएगा ये पूरा गुलकंद है
वाह वाह...!! क्या लिखते हैं आप...जवाब नहीं आपका
वाह वाह, सुभान अल्लाह! हमरे दिल की बात कह दी.
जवाब देंहटाएंहमरी दुआ भी गाली
उनकी गाली कव्वाली
हमरी जुबान काली
उनकी सूरज की लाली
तुम्हारा घमण्ड आत्मविश्वास है
जवाब देंहटाएंहमरा विश्वास भी दम्भ है।
तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
हम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
क्या बात है ......!!
तुम कहो तो पांडित्य आलोचना है
जवाब देंहटाएंहम कहें तो दाल भात में मूसर चन्द है।
तुम लिक्खो तो नए प्रतिमान हैं
हम जो रचे तो लन्द फन्द है।
कमाल तुकबंदी है ...समझने वाले समझ गए ...ना समझे वो अनाड़ी हैं ..!!
"एक्के जगह बँधा रच्छासूत
जवाब देंहटाएंहमरा चिरकुट तुम्हरा कंगन बाजूबन्द है।"
यही तो समझना शेष रहा भईया । जय हो नाव-खेवईया !
जय हो!
जवाब देंहटाएंजहां तुम, तुम होने; और हम हम होने का झमेला है, वहां यह अन्तरमयी कविता होना लाजमी है।
जवाब देंहटाएंपर यूं देखें कि एक ही मनई में घमण्डात्मक आत्मविश्वास और विश्वासात्मक दम्भ पाया जाता है।
मैं ही अपने में सवर्ण और अपने में ही दलित हूं मित्र! बाहर क्या देखूं।
लेकिन यह जरूर है कि कविता वाली पोस्टों पर टिपेरना कठिन काम है!
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