यह कविता इस प्रयास को समर्पित
लगे रहो।
जब सब कुछ हो विरुद्ध व्यर्थ
हो रहे हों अनर्थ।
अबूझ को सूझ और
देने को कुछ अर्थ।
लगे रहो।
गरजता घनघोर
समन्दर बेइमान।
हों भले मन्द स्वर
या सजे गिलहरी का मौन
पुल निर्माण को
लगे रहो।
रेत में कदम
बहक चलें या सहम।
बने कैसे पत्थर लीक
तुम न पाए सीख।
धुल जाएँगे अक्षर
किंतु अपने पढ़ान का
करते लिखान
लगे रहो।
शापित हैं हम।
क्या हुआ जो जुड़े न लख कदम।
दो दो के गुणान को
पहाड़े की शान को
चढ़ते रहो
लगे रहो।
वाह !तेजस्वी उदबोधन ! निश्चय ही catalytic होगा !
जवाब देंहटाएंगरजता घनघोर
जवाब देंहटाएंसमन्दर बेइमान।
हों भले मन्द स्वर
या सजे गिलहरी का मौन
पुल निर्माण को
लगे रहो।
bahut sundar !
दो दो के गुणान को
जवाब देंहटाएंपहाड़े की शान को
चढ़ते रहो
लगे रहो।
कितना सघन है आपका आह्वान. बहुत सुन्दर
"धुल जाएँगे अक्षर
जवाब देंहटाएंकिंतु अपने पढ़ान का
करते लिखान
लगे रहो।"
हम तो यहीं ठहर गये भईया । जबरदस्त ।
लगे रहो।
जवाब देंहटाएंजब सब कुछ हो विरुद्ध व्यर्थ
हो रहे हों अनर्थ।
अबूझ को सूझ और
देने को कुछ अर्थ।
लगे रहो....
LAJAWAAB .... SUNDAR AAHWAAN HAI ....KARM PATH PAR LAGE HI RAHNA CHAAHIYE ...
थकोहम को भूलकर
जवाब देंहटाएंटांग दिया सूल पर
माँ गंगा की जै जै
धत् तू तू मै मै
करते साकार समय निज का
धर्म ध्वजा धारे हो द्विज का
लगे रहो
bahut hi laajwaab kavita......
जवाब देंहटाएंभाई कविता भी अच्छी है चित्र भी अच्छा है लेकिन यह लोग समन्दर के किनारे क्या साफ सफाई कर रहे है या कुछ और ?
जवाब देंहटाएंओह, वह पूछता था कि यह सूझा कैसे सफाई का। मैने कहा सूझना क्या है? नदी के पास जाओ और सुनो तो खुद बोलती है।
जवाब देंहटाएंहां धीमे बोलती है - यत्न कर सुनना होता है!
वीर तुम बढे चलो
जवाब देंहटाएंधीर तुम बढे चलो
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर हटो नहीं
तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो :)
'शापित हैं हम।
जवाब देंहटाएंक्या हुआ जो जुड़े न लख कदम।
दो दो के गुणान को
पहाड़े की शान को
चढ़ते रहो'
ye panktiyan khaas lagin.
Ati uttam kavita!
kyaa baat ha!!
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