अब जब कि ये स्वर बुलन्द हैं कि
- मासूम प्रेम जैसा कुछ नहीं होता
- बिन सोता सूखा है स्थायी सीजन
- आलिंगन माल में एक और वर्जन लंघन;
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।
सब ओर उन मक्कारियों के साये हैं
जो तब भी थीं जब हम सकारते थे प्रेम को
हताशायें और तनाव बढ़े हैं - तब भी बढ़े थे।
लेकिन चन्द चमकारियों के लालच में
जवानों ने भोली कवितायें पढ़ना गढ़ना छोड़ा है
और हमारी आयु के जन के लिये कुछ भी रचना
या तो बाध्यता है या सिर्फ एक एडिक्शन है,
जिन्दगी भरपूर गबन है।
कफन कपड़ों से सिले बस्तों में
बच्चों की पुस्तकें दफन हैं
और उनके अक्षरों में
नैतिकता के आडम्बर कीड़ों से लगे हैं।
हर समस्या पर हो हल्ला विमर्श है
इनामों की चमक चकमक है
चीखते टीवी पर चमत्कार हैं
आइटम डांस की ललकार है
जब कि पड़ोस में सन्नाटा है।
पत्नी की किटी पार्टी है
बच्चों के फेसबुकिया प्रोफाइल हैं।
जमाने की हाँ में हाँ नहीं मिलाता
उसके साथ नहीं चलता
मिड एज क्राइसिस के साथ
इन सबके बीच यह 'तुम्हारा' अकेला है -
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।
तुम्हारी याद की ही तरह
मेरे जैसे का ज़िद पकड़ बचे रहना
उसका बचे रहना है जो
- निहारा करता था आसमान को
और तारों से करते हुए बातें
गढ़ लेता था किस्से।
- ढूँढ़ता था स्वर हर गीत में
(जब कि संगीत का स भी नहीं आता था)
और मुस्कुरा देता था अकेले
किसी काल्पनिक गीत पर।
जानते हुए भी अपनी अप्रासंगिकता
जाने क्यों मुझे लगता है
कि मैं हूँ उस परम्परा का वाहक
जो अनंत दूर सर्वनाश की आशंका में
सृजन की आस और कर्म को सुरक्षित रखने हेतु
समय की वृद्ध चाल को ठेंगा दिखाती
तैयार करती है पीढ़ियाँ एकाकी लोगों की।
मैं हूँ बस वाहक
मुझे तो दायित्त्व सौंप देना है
किसी और को।
धीमे पग चलते
मन को बहलाने को
लहकाने को -
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है
आखिर तुमने ही तो सौंपा था -
थे तो नहीं लेकिन अंतत: हमें एकाकी होना ही था।
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।
- मासूम प्रेम जैसा कुछ नहीं होता
- बिन सोता सूखा है स्थायी सीजन
- आलिंगन माल में एक और वर्जन लंघन;
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।
सब ओर उन मक्कारियों के साये हैं
जो तब भी थीं जब हम सकारते थे प्रेम को
हताशायें और तनाव बढ़े हैं - तब भी बढ़े थे।
लेकिन चन्द चमकारियों के लालच में
जवानों ने भोली कवितायें पढ़ना गढ़ना छोड़ा है
और हमारी आयु के जन के लिये कुछ भी रचना
या तो बाध्यता है या सिर्फ एक एडिक्शन है,
जिन्दगी भरपूर गबन है।
कफन कपड़ों से सिले बस्तों में
बच्चों की पुस्तकें दफन हैं
और उनके अक्षरों में
नैतिकता के आडम्बर कीड़ों से लगे हैं।
हर समस्या पर हो हल्ला विमर्श है
इनामों की चमक चकमक है
चीखते टीवी पर चमत्कार हैं
आइटम डांस की ललकार है
जब कि पड़ोस में सन्नाटा है।
पत्नी की किटी पार्टी है
बच्चों के फेसबुकिया प्रोफाइल हैं।
जमाने की हाँ में हाँ नहीं मिलाता
उसके साथ नहीं चलता
मिड एज क्राइसिस के साथ
इन सबके बीच यह 'तुम्हारा' अकेला है -
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।
तुम्हारी याद की ही तरह
मेरे जैसे का ज़िद पकड़ बचे रहना
उसका बचे रहना है जो
- निहारा करता था आसमान को
और तारों से करते हुए बातें
गढ़ लेता था किस्से।
- ढूँढ़ता था स्वर हर गीत में
(जब कि संगीत का स भी नहीं आता था)
और मुस्कुरा देता था अकेले
किसी काल्पनिक गीत पर।
जानते हुए भी अपनी अप्रासंगिकता
जाने क्यों मुझे लगता है
कि मैं हूँ उस परम्परा का वाहक
जो अनंत दूर सर्वनाश की आशंका में
सृजन की आस और कर्म को सुरक्षित रखने हेतु
समय की वृद्ध चाल को ठेंगा दिखाती
तैयार करती है पीढ़ियाँ एकाकी लोगों की।
मैं हूँ बस वाहक
मुझे तो दायित्त्व सौंप देना है
किसी और को।
धीमे पग चलते
मन को बहलाने को
लहकाने को -
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है
आखिर तुमने ही तो सौंपा था -
थे तो नहीं लेकिन अंतत: हमें एकाकी होना ही था।
तुम्हारी याद मुझे जरूरी लगती है।