जल ले मन दीपक सुघर, बाती नहीं न तेल सजल, जल ले मन अँजोर जोर।
कब था सब शुभ धवल, कब थे नहीं काले जलद, न बुझ, जल मन मनजोर।
गोधूलि होंगी राहें विकल, चाह होगी पर धीर बरज, लहक टपकी आँख कोर।
जल ले मन अँजोर जोर मनजोर टपकी आँख कोर।
भूख बैठी डार पर
घुघ्घू चले शृंगार पर
लक्ष्मी लुटे लौंजार पर।
क्या हुआ जो छ्न्द टूटे
क्या हुआ जो बन्द फूटे
तुम जमे रहो जेवनार पर
शान पट्टी मार कर।
खाँसता जो गीत किसका मीत
निचोड़ ले हर बूँद ऐसी प्रीत
यह जीना चबेना माल पर
जो मैल बदबू हर साँस पर
चढ़ गई ज़िन्दगी शान पर
तुम जमे रहो जेवनार पर
टँगे रहो निस्तार पर।
करूँ क्या मौसम तो आएँगे ही, हँस लूँ, एक दिन फुलझड़ी छोड़ लूँ
आरती सजा पूज लूँ उल्लुओं की मात को।
हाँ रहेंगे हमेशा मैल बदबू
खाँसते गीत होंगे शान पट्टी निस्तार पर
नाचता दलिद्दर होगा हमारी ताल पर
साल भर,
दीपावली तो फिर भी आएगी ही
मना लूँ।
न कहो
जल ले मन अँजोर जोर मनजोर टपकी आँख कोर।
आज के दिन कोई रोता है भला?
आज के दिन कोई रोता है भला?
जवाब देंहटाएंफिर यह लौंजार किधर से चला?
आज माथा तेल से है क्यों मला,
छंद टूटे, भांड फूटे, भाव लूटे, कपार कूटे
क्यों इधर मन म्लान जिसमें दुख पला
आज के दिन कोई रोता है भला?
@
जवाब देंहटाएं...लक्ष्मी लुटे लौंजार पर...
यह 'लौंजार' मुझे बाजार की ध्वनि दे रहा है.
...बाजार को लौंजार कहने की हिमाकत इस युग में ???
कठिन काम है. आपने किया है . बधाई है.
तो ऐसी रही एक नास्तिक की दिवाली। शान पट्टी मारकर लौंजार पर आस्तिक लक्ष्मी लुटाया करते हैं तो लुटाया करें।
जवाब देंहटाएंआज नहीं रोना है,
जवाब देंहटाएंधैर्य नहीं खोना है,
काल के कपाल पर,
सन्धियाँ पिरोना है।
सिद्धार्थ जी की कविता ज्यादा समझ आयी!
जवाब देंहटाएंचलिए कोई तो समझ में आई।
जवाब देंहटाएंभाई गज़ब की दृष्टि है आपकी ।
जवाब देंहटाएं