तुम्हारे पत्र दिन में नहीं पढ़ता
उजाले में आँखें चौंधियाती हैं
और सूरजमुखी ऐंठने लगते हैं।
तुम्हारे पत्र रात में नहीं पढ़ता
रजनीगन्धा सी महक उठती है
यादों के साँप बाहर आने लगते हैं।
सच कहूँ तो आज तक उन्हें खोला बस है।
'मेरे प्रियतम' और 'तुम्हारी तुम ही'
पढ़ कर बन्द कर दिया है।
बीच के अनपढ़े कोरेपन ने
जाने कितनी ही कवितायें रचाई हैं।
कहोगी तो पढ़ लूँगा -
जब दिन नहीं होगा
जब सूरजमुखी फूल नहीं खिलेंगे।
जब रात नहीं होगी
जब रात नहीं होगी
जब रातरानी नहीं फूलेगी।
जब
साँप विलुप्त प्रजाति हो जाएँगे।
साँप विलुप्त प्रजाति हो जाएँगे।
तब तक प्रतीक्षा करो न!
उत्तर तो देता हूँ न!
तुम भी नहीं पढ़ पाती हो क्या?
ऐ भाई....लगता है कहीं फंस फंसा गये हो....तभी इतनी अनुभवजन्य बातें सटीकता से कह रहे हो।
जवाब देंहटाएंरहो, घर में खबर करता हूं कि संभालो गिरिजेश बाबू को....बहक रहे हैं :)
मस्त कविता है जी।
सबेरा जब हुआ तो फूल बन गए जो रात आई तो सितारे बन गए :)
जवाब देंहटाएंbeautiful....khuubsurat baat...subah subah
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंfb - face book?
जवाब देंहटाएंअरे! आपत्ति क्यों होगी? शुक्रिया इस जर्रानवाजी (पता नहीं शब्द ठीक है या नहीं :)) का।
fb - face book
जवाब देंहटाएंन पढ़ें पत्र, शब्द धोखा दे जायेंगे। कल्पित भाव के सहारे जीवन काट दें।
जवाब देंहटाएंकल्पनाओं के पंख नही होते--कहीं भी कभी भी कैसे भी आदमी को लुभाती रहती हैं फिर उड जाती हैं बिना पँखों के। सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें।
न पढ़ें पत्र, शब्द धोखा दे जायेंगे। कल्पित भाव के सहारे जीवन काट दें।
जवाब देंहटाएंha ha
पढ़ पढ़कर पड़ा भये। पंडित हुआ न कोय।
जवाब देंहटाएंउफ़ ! उफ़! उफ़!कत्ल कर दिया……………कमाल है ………………कितनी गहनता और कितना प्रेम …………क्या कहूँ निशब्द कर दिया समझ नही आ रहा……………शब्द संयोजन और भाव संप्रेषण दोनो ही धारदार हैं……………आज की सबसे उत्तम रचना है।
जवाब देंहटाएंthik hai jab waqt aye to bata dijiyega
जवाब देंहटाएं"tumhare khat aj padhe"
:)
अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंतुम आकर गुज़र गयीं देख ही न सका।
आंखे बन्द जो थीं तुम्हारे तसव्वुर में।|
बड़ी ही खूबसूरत .भावपूर्ण..नाज़ुक सी कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत पसंद आई.