घिर आई बदलियाँ कोई नाम न दो
स्याह शाम दिये को इलज़ाम न दो
तमाम शहर रोशन गलियों में आब
बेनूर से चेहरे कोई पहचान न दो
ठंडक से परेशाँ घर घर की गर्मी
बिस्तर बेसलवट वस्ल नाम न दो
बच्चों की रवायत जो खेले खामोश
ग़ुम खिलखिल को कोई पयाम न दो
है तासीर इनकी उलूली जुलूली
मेरे गीतों को बहरों की तान न दो
द्विपदीयां तो मस्त अंदाज लिए हुए हैं....बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंघिर आई बदलियाँ कोई नाम न दो
जवाब देंहटाएंस्याह शाम दिये को इलज़ाम न दो
...वाह!
यदि चढ़ाकर खाक में मिलाना है,
जवाब देंहटाएंतो मुझे इज़्ज़त-ए-ईनाम न दो ।
बहुत सुन्दर गज़ल...
जवाब देंहटाएंहै तासीर इनकी उलूली जुलूली
जवाब देंहटाएंमेरे गीतों को बहरों की तान न दो...
बेहतर...
बच्चों की रवायत जो खेले खामोश
जवाब देंहटाएंग़ुम खिलखिल को कोई पयाम न दो
badhiya ......
शब्द आसान हों तो उलझनें कमतर हो लें।
जवाब देंहटाएंबहर-ओ-काफ़िया का इतना ताम-झाम न दो॥
:)
आप तो बवाल पर उतारू हैं। सब लूट ले जाएंगे क्या?
सच में घिर आई बदलियाँ या बस बहर मिलाने के लिए. :)
जवाब देंहटाएंयह तो तरही बन गया या नहीं ? लग तो बड़ा जोरदार रहा है !
जवाब देंहटाएंइससे पहले वाली मे ज़्यादा मज़ा आया था ।
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