हवाओं में घुली
ताज़ा रक्त गन्ध
मलयानिल सुगन्धि भरे
शब्द कैसे रचूँ ?
चीखते अखबारों में
सिन्दूर की सिसकियाँ हैं
ढोर चराते कान्हा की बाँसुरी सा
कैसे बजूँ?
घना घनघोर जंगल
घेरे सहेजे है धरती के मंगल
लहक उठी हैं आनन्द तुकबन्दियाँ
पर ऊँची डालों से
घात है लगी हुई
अहेर की रपट पलट
आँखों को मूँद
गीतों के बन्ध कैसे गढ़ूँ ?
निर्लज्ज है प्रकृति
प्रात है, दुपहर है, साँझ है, रात है
व्यवस्थित और उदात्त
रंगशालाओं के पाठ हैं
आँसुओं को रोक
अज़गर धीर धर
फुफकारते अभिनय
कैसे करूँ?
सौन्दर्य है, राग है
नेह है,
छन्दमयी देह है
सनातन जननी !
तुम्हारी आराधना में
प्रेम में
भक्ति में
पगूँ?
डगमगाते हैं पग ।
सृजन लास्य जैसे
नर्तन कैसे करूँ?
कैसे ??
पूछता, कैसे करूँ आराधना,
जवाब देंहटाएंअलस में छोड़ी अधूरी साधना,
यदि कहीं कारण जगत का ज्ञात हो,
न करूँ मैं आत्म की अवमानना ।
फूलों के गीत न गाओ साथी ,दम घुटता है
जवाब देंहटाएंपत्थर की ग़ज़ल सुनाओ साथी, दम घुटता है.
समसामयिक मार्मिकता...
जवाब देंहटाएंमन उदास हो गया है...
हवाओं में घुली
जवाब देंहटाएंताज़ा रक्त गन्ध
मलयानिल सुगन्धि भरे
शब्द कैसे रचूँ ?
चीखते अखबारों में
सिन्दूर की सिसकियाँ हैं
मार्मिक अभिवय्क्ति आज की स्थिती पर । वन्दनीय है आपकी कलम। धन्यवाद
कैसे ...कैसे ....सचमुच बड़ी मुश्किल -कविताई चालू रखे हैं -इसी आशंका में यहाँ आज आया और टकाटक माल पाया -शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंसामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, प्राकृतिक और तो और व्यस्था भी .....सभी एक स्वर से जहर उगल रहे हों तो सृजन भी मार्मिक होगा न .
जवाब देंहटाएंइस पीड़ा को सभी महसूस कर रहे हैं. आपने अभिव्यक्ति दी, भूला मन फिर उदास हो गया..
सही है ऐसी स्थितियों में कविता सम्भव नहीं होती , जिनसे होती है वे पाखंडी हैं ।
जवाब देंहटाएंmushkil to hai ...
जवाब देंहटाएंvartmaan sthiti par sateek kavita ..!
samsasamyik kavita.............sundar prastuti
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यह गिलास आधा भरा भी कहा जा सकता है न देव, खालीपन को क्यों उभारते हैं?
इतना नैराश्य अच्छा नहीं कवि!
अपुन को नई आशा, नई सुबह और नये-नये रंगों के गीत गाता कवि मांगटा...
चीयर अप एवरीबडी...
:)
...
हवाओं में घुली
जवाब देंहटाएंताज़ा रक्त गन्ध
मलयानिल सुगन्धि भरे
शब्द कैसे रचूँ ?
शब्द रचना हेतु निर्द्वन्दता चाहिये. वाकई रक्त गन्ध के बीच शब्द रचना तो सम्भव ही नही है
कविता वही जो गहन-घन अंधकार में करे ज्योतित मन
जवाब देंहटाएंऔर दुष्कर-विजन वन में ढूँढ़ लाए मोह का मन, सहज नर्तन ।
वही कविता जो निपट ही बन सके हर अभागे का अघायापन
वही कविता जो मरुस्थल में सहज ही खींच लाये नेह-सावन ।
रच सको यदि घृणा में सुन्दर सलोनापन
रच सको नैराश्य में यदि प्रेरणा का मन
कर्कशा ध्वनि-बीच सुरभित रच सको यदि गीत-कंपन
सर्जना तब सृष्टि का सौन्दर्य होगी, सुहृद कविमन !