रविवार, 23 मई 2010

नए जमाने में पुरानी सोच वाले गुरु और शिष्य के संवाद का एक लघु अंश

आज आभासी संसार और वास्तविक वातावरण में टहलते हुए दो नए जन मिले। देखने से गुरु शिष्य लगते थे। विपरीत दिशाओं से आते हुए जब हम लोग पास हुए तो उनकी बातचीत के कुछ अंश कानों में पड़े। अच्छे लगे , सोचा आप सबको भी बता दूँ। उनके पीछे पीछे नहीं जा पाया। उनकी निजता का उल्लंघन होता। हालाँकि उनकी बातचीत में निज जैसा कुछ भी नहीं था फिर भी ...

"...बड़े शहरों की ज़िन्दगी अब 'सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यूँ है' की बिडम्बना से आगे वहाँ पहुँच चुकी है जहाँ जलन और तूफान स्वीकृत हो चले हैं। मन में सवाल तक नहीं उठते । एक अज़ीब तरह की झुँझलाहट है जो नकार नहीं पाती क्यों कि नकार के साथ ही विडम्बना और रोटी से जुड़ी समस्याएँ इतनी बड़ी दिखने लगती हैं कि सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। 
दोस्त हैं लेकिन सतर्क से। विमर्श के और समागम के विषय या बहाने परिवेश से बाहर वालों के लिए कौतुहलकारी नहीं भयकारी हैं। 'गोली मार भेजे में ..' का बेलौसपना भी नहीं, अजीब सी बँधी जिन्दगी है, सिमटी हुई सी, औपचारिक सी। कहने के लिए भी दोस्त गले नहीं लगते ...दिखावे तक की हैसियत आधुनिक(ता) पहनावे [लगता है सुनने में भूल हुई :)] सी हो गई है - यूज एण्ड थ्रो ... 
ऐसे में कविता ? क्षमा करें आर्य ! 'भोग' दु:ख देता है। इस दु:ख से 'मुझसे पहली सी मुहब्बत ' जैसी नज़्में नहीं निकलतीं।"

"वत्स! तुम्हारी सोच सीमित है। दु:ख दु:ख ही होता है। उसमें प्रकार नहीं आकार होते हैं। उन आकारों को वाणी दो, काव्य स्वत: उतरेगा। क्रौञ्च वध शाश्वत है और अनुष्टप भी शाश्वत हैं।"

12 टिप्‍पणियां:

  1. समाज का निरन्तर परिवर्तनशील रहना भी शाश्वत है। प्रश्न यह है कि इसकी दिशा क्या हो। सकारात्मक या नकारात्मक? मुझे लगता है कि दोनो प्रकार की शक्तियाँ समानान्तर बढ़ रही हैं। सबकी गुन्जाइश है यहाँ।

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  2. कविता भावों की गहराई को वाणी देने से बनती है ।

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  3. रोटी की समस्याएँ बढ़ जाएँ, समझिए परिवर्तन गुणात्मकता धारण करने के नजदीक है।

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  4. मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
    यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।
    ------ कुछ निबहे न निबहे , नश्वरता तो निबहेगी अनंत काल तक !
    यही कहूंगा --- '' शोकं मा कुरु '' !

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  5. living in both the worlds since 2005.Almost six years now. I couldn't find any difference in real and virtual world.

    In virtual world,real people interact on chat and through comments or emails. While in real world they use another modes like letters and telephone.

    In nutshell, there is no difference in both the worlds. Because both the worlds are inhabited by real people of blood and flesh, heart and mind.

    I had gone through many phases of realizations in this virtual world. Thanks to technology. This 'aabhasi' world is a wonderful platform to learn the bitter truths of life.

    It gives us an opportunity to know the thought process of a person which is not easily possible in real world.

    Virtual world has answered many of my doubts, conflicts and hitches. Here, a person opines freely without any fear. This helps us in knowing each other in a better way.The free flow and exchange of views enables us to fight the battle called 'Life' in a smooth and serene way.

    Recently i got the answer of my only unanswered question through virtual world.

    Mind is at peace.

    This virtual world is like a wonder drug for..."Seene mein jalan, aakhon mein tufaan sa kyun hai..."

    I would rather say....

    " Iss virtual world mein sab-kuchh aasaan sa kyun hai" ?

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  6. विचारणीय लेख....

    आपकी कविता...चर्चा मंच पर ली गयी है ..

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

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  7. @" Iss virtual world mein sab-kuchh aasaan sa kyun hai" ?
    क्यूंकि यहाँ जान छुड़ाना आसान है ...:):)
    दिव्या जी , मैं आपकी बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित हूँ ...परफेक्ट लेडी विथ हेड एंड हर्ट ...क्या आपने किसी को बहुत हर्ट कर दिया है ...??
    मेल एड्रेस/ब्लोगर प्रोफाइल नहीं है आपका वर्ना वही पूछती ...

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  8. Vani ji,

    Only a woman can understand the essence of what i write.

    I am thankful to you.

    Divya

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  9. .
    .
    .
    अब क्या कहें देव,

    आपने उन गुरू-शिष्य के पीछे थोड़ी दूर तक और चलना था...तब शायद इस वार्तालाप का कोई निष्कर्ष निकल पाता... अब तो आपको छंद में ढालना ही होगा इस कशमकश को !

    @ Ms Divya (Zeal),

    Only a woman can understand the essence of what i write.

    Come on, don't believe in cliche !

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  10. @

    Praveen Shah ji-

    That statement was experience based. But yes, there is no rule without exception. May be 'they' can also understand.Usually a martian does know what a woman goes through.

    A woman is indeed lucky if she is understood by a man. [ Barring father, brother, hubby and son ].

    @आपने उन गुरू-शिष्य के पीछे थोड़ी दूर तक और चलना था...तब शायद इस वार्तालाप का कोई निष्कर्ष निकल पाता..

    Do you believe in spoon-feeding?...Can't you understand the unsaid?

    By the way nayee-purani soch are always prevalent in our society in all times.

    A logical and rational mind has all the answers.

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  11. मुझे क्या हो गया है -मैं कुछ समझ क्यों नहीं पा रहा हूँ ?

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  12. "दु:ख दु:ख ही होता है। उसमें प्रकार नहीं आकार होते हैं।"
    प्रकार नहीं आकार होते हैं ! ! ! अच्छा ! सोचते हैं ! देखॆं समझ में आता है कि नहीं ! ............
    प्रकार नहीं होते यह तो ठीक है , लेकिन ये "आकार" ????????????????

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