न,
अब नहीं लिखूँगा -
कुछ नया नहीं कहने को।
तुम मुझे 'बड़ा बोर' कहती होगी-
वही पुरानी बार बार।
नया क्या सुनाऊँ तुम्हें?
पत्रों में पाखंड है
पर अक्षरों के घुमाव दबाव तले
लुका छिपी खेलती भावनायें
दिख ही जाती हैं।
नि:स्वाद एस एम एस के संक्षिप्त अक्षर
ई मेल में सजे सँवरे सन्देश
फेसबुक ट्वीटर पर शब्द सीमा में सिकुड़े
जज्बात-
मुझे रास नहीं आते
तुम कहती होगी - दकियानूस!
अ क्रीचर लिविंग इन पास्ट।
हाँ, मैं भूत में ही जीता हूँ -
फुटपाथ पर अब भी ठिठुरन है।
बैल हों या ट्रैक्टर
खेतों में अब भी गोल गोल भटकन है।
दफ्तर में टेबल के नीचे
अभी भी खाली जगह है।
अर्जियाँ उड़ गायब होती हैं वहाँ से,
बिना वजन के अभी भी।
होठ अब भी वैसे हैं
पर मुस्कान की लकीरों में
रिसेप्शनिस्ट स्वागत है
मुझे बगल में रखे फूलदान की
फ्लेवरी गन्ध ध्यान में आती है।
दुनिया अब भी पुरानी ही है
बस प्रदूषण बढ़ गया है,
तुम मॉडर्निटी को पकाती रहो
मुझे उसे ज़िन्दा रखना है
जो ऐसी आँच में मर जाता है।
दकियानूसी ज़रूरी है
वर्ना मॉडर्न होते होते
दुनिया ही नहीं बचेगी।
...हाँ, इसे इसलिए लिखा
कि कल सुना किसी को कहते
'प्रेम माने टाइमपास'।