आज गाऊँगा
वह अनसुना गीत
जिसे सुना
याद की लू झुलसते।
नमी
पनीली आँखों में
होठों की नरम लकीरों में।
साँस तपिश
होठ सूखे
चुम्बन भिगोए
आँच सुलगते।
देह घेर
हाथ फिसले
छू गए स्वेद
वस्त्र शर्माते रहे।
न समझे कि
चिपकी उमस,
शीतल हवा चली
जो शाम ढलते।
अचानक से लैपटॉप गियर बदल कर यादों की लू झोंकने लगा। ठंडी रजाई कुछ गर्म हुई। डूबने में झुलसने की संभावना है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढियां गीत शर्वरी -बस अनुसुना को अनसुना कर दीजिये
जवाब देंहटाएं@ धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशिशिर में गीष्मानुभव, यादों का लू जैसे चलना....
जवाब देंहटाएंउद्विग्नता को विश्राम दें कविवर।
गिरिजेश भाई, अगर इसे गाकर सुनाते तो और जमता।
जवाब देंहटाएं---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
ला-जवाब चित्रण.
जवाब देंहटाएंदेह की वेदिका पर हवन हो गयीं
जवाब देंहटाएंप्रेम के वेद की संहिताएं सभी