सिल गए हैं
बोलना अब भी नहीं
सुनना कैसे हो?
बोलना तब भी नहीं था
जब अधखुले होते थे
मैं सुन लेता था बहुत कुछ
बस आँखों से।
तुम कहती थी-
एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हो -
तुमसे कुछ कहना बेकार है।
मैं पूछता था -
तुमने कहा था क्या कुछ?
होठ ऐंठ कर रह जाते
बस मिल जाते
कहना कैसे हो?
हाँ कहा था कभी
"मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता।"
जीवित हूँ तुम्हारे बिना
जान चुका हूँ जीना मरना अपने वश में नहीं।
अपनी कहो
जीवित कैसे रह गई?
साँसें हमारी एक हैं
क्या इसलिए?
बात वही रह गई न!
"मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता।"
वाकई जीना मरना अपने वश में नहीं!
उफ! ये ओंठ!!
जवाब देंहटाएंकविता के भाव में जो ऐंठना है उससे भी मेल नहीं खाते
भयावह!
दिमाग तो यही ले गये।
अवश जीवन,
जवाब देंहटाएंकितनी चाहें,
कैसी राहें,
ढूढ़ें नित ही,
व्यक्त निगाहें।
मनोभावों का उत्तम चित्रण .......
जवाब देंहटाएंचित्र और कविता को देख कर सहज ही मन में अंजाना अंजानी के ये लिरिक्स गुनगुनाने लगे.....
जवाब देंहटाएंनैनां लगिया बारिशा ते सुके सुके सपणें वी भिज गये.... :)
मस्त कविता है।
बिना कहे भी बात होती है…………ये दिल के सौदे ऐसे ही होते हैं……………कब किसी के वश मे होते हैं।
जवाब देंहटाएंइसकी गहनता पकड़ने की कोशिश कर रहा हूँ
जवाब देंहटाएंहाथ नहीं आ रही...।
लगता है छूने पर करेंट लग जाएगा।
साँसें तो एक ही हैं..मन के भाव भी....ना किसी के मन के भाव मिटे, ना सासें...
जवाब देंहटाएंबड़े सूक्ष्म भाव हैं कविता में...और एक विश्वास भी..प्रेम का उद्दात्त रूप
जान चुका हूँ जीना मरना अपने वश में नहीं।
जवाब देंहटाएंअपनी कहो
जीवित कैसे रह गई?
:( से :) के बीच का सार मिल गया मुझे इनमे...
अब न आदत रही गुनगुनाने की वो
जवाब देंहटाएंमुझसे लिखने का सारा हुनर ले गयी
कल झुकाकर नज़र रो पड़ी और फिर
मेरे सपनों की पूरी उमर ले गयी.
सैद्धान्तिक या दार्शनिक अन्दाज में शायद इसी को कहा जाता है कि...जीवन चलता ही रहता है ....अविरल सतत ! चाहे कुछ भी हो !
जवाब देंहटाएंइन होठों की उम्र कितनी है या ये कितने उम्र के होंठ हैं ?
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