रविवार, 22 अप्रैल 2012

रूप और प्रात, दुपहर, साँझ, रात

प्रात की लाली बदन पर पोत लूँ
दुपहरी उजाले नयन भर समेट लूँ
साँझ के प्याले अधर रस सोख लूँ।
सज गया जो रूप सुन्दर,
निहार लूँगी।
रात अँधेरी आरसी में,
रूप निहार लूँगी॥

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