सोमवार, 7 मई 2012

पावक



जम गये श्लेष्म कण साँस साँस, सकुचा प्राण स्थान वायु गति पड़ी मन्द 
हिचकियाँ करतीं रह रह आह्वान 
उमगो अग्नि देह में शमि घर्षण 
दौड़ो उद्धत बन जीवन धावक
हे पावक! 

प्रकृति तूलिका साक्षात रंग, रक्त पीत श्वेत आँच, आह जीवंत
आओ कि भीतर सजा है श्मशान 
जल उठे मृत माया करूँ तर्पण 
छुओ मुझे हर अंग द्रुत शावक 
हे पावक! 

आहुति है शेष, शेष है उमंग, वृथा सभी जो देह न दे अंत तक संग 
असमय क्यों पोतूँ भस्म ललाट 
अभी शेष है पूर्ण समर्पण 
मुक्त करो रोग से, हे पावक! 
हे पावक!!

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