हिचकियाँ करतीं रह रह आह्वान
उमगो अग्नि देह में शमि घर्षण
दौड़ो उद्धत बन जीवन धावक
हे पावक!
प्रकृति तूलिका साक्षात रंग, रक्त पीत श्वेत आँच, आह जीवंत
आओ कि भीतर सजा है श्मशान
जल उठे मृत माया करूँ तर्पण
छुओ मुझे हर अंग द्रुत शावक
हे पावक!
आहुति है शेष, शेष है उमंग, वृथा सभी जो देह न दे अंत तक संग
असमय क्यों पोतूँ भस्म ललाट
अभी शेष है पूर्ण समर्पण
मुक्त करो रोग से, हे पावक!
हे पावक!!
सबको शुद्ध कर जाती पावक...रोगमुक्त कर जाती पावक...
जवाब देंहटाएंआदि शक्तियों का आह्वान कभी कभी अपरिहार्य हो उठता है !
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!!!
जवाब देंहटाएंसादर.
ऐसे उमगे पावक कि सब शुद्ध हो!
जवाब देंहटाएंजय हो!