... तो जब शाम होगी, थकन ढलान होगी
खोलूँगा वह पीला पड़ा कागज।
जिसे कहती थी तुम पहला प्रेमपत्र
जिसके नीचे लिखा अनाम सादर।
बारह बरस पुरानी स्कॉच
जिसकी रंगत समेट रहा होगा दुकान
बूढ़ा एक सूरज नशे से परेशान
हाथ हिला उसे करूँगा सलाम।
ढोते बढ़ती उम्र के सामान
रोज थोड़ा थोड़ा खुश होने से है बेहतर
दुख की झिरझिरी लूँ समेट सह
खत पढ़ते हो लूँ तर
आँखों से सादर।
होठों के बादर
उमड़ें थर थर
थोड़ा लूँ बरस
बारह बरस!