बुधवार, 14 सितंबर 2011

मील का पत्थर

हूँ मील का पत्थर, मेरा कोई इतिहास नहीं 
इतिहास हो जाऊँगा उस दिन, जिस दिन न बचेगा रास्ता कोई। 
मुझे निकालो, लगा दो कहीं कि राही राह भूलें 
बच रहेंगी राहें बताती चुपके से, इस जगह था निशानदाँ कोई।
आँख फाड़े चल दिये हो जब थकोगे और रुकोगे
फट रहेंगे फफोले पाँव के कहेंगे, है इस जगह अश्क दवा कोई।
चलती तुम्हारी जो चुनते न गढ़ते और न लिखते 
पत्थरों की खास तबियत घायल हुई जो, मना न सका कोई।     

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वा वाह!
    वही तेवर व्यंग्य वाले
    वाह वा वाह!

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  2. राह बनी रहे, मील के पत्थर पथ दिखलाते रहें।

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  3. बच रहेंगी राहें बताती चुपके से, इस जगह था निशानदाँ कोई।

    बेहतर...

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  4. हूँ मील का पत्थर, मेरा कोई इतिहास नहीं
    इतिहास हो जाऊँगा उस दिन, जिस दिन न बचेगा रास्ता कोई।
    बहुत उम्दा..... सादा बयानी भी कितनी प्रभावशाली हो सकती है यह इस रचना में निहित है>>>>>

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