हूँ मील का पत्थर, मेरा कोई इतिहास नहीं
इतिहास हो जाऊँगा उस दिन, जिस दिन न बचेगा रास्ता कोई।
मुझे निकालो, लगा दो कहीं कि राही राह भूलें
बच रहेंगी राहें बताती चुपके से, इस जगह था निशानदाँ कोई।
आँख फाड़े चल दिये हो जब थकोगे और रुकोगे
फट रहेंगे फफोले पाँव के कहेंगे, है इस जगह अश्क दवा कोई।
चलती तुम्हारी जो चुनते न गढ़ते और न लिखते
पत्थरों की खास तबियत घायल हुई जो, मना न सका कोई।
वाह वा वाह!
जवाब देंहटाएंवही तेवर व्यंग्य वाले
वाह वा वाह!
अत्यंत प्रभावशाली प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंराह बनी रहे, मील के पत्थर पथ दिखलाते रहें।
जवाब देंहटाएंबच रहेंगी राहें बताती चुपके से, इस जगह था निशानदाँ कोई।
जवाब देंहटाएंबेहतर...
हूँ मील का पत्थर, मेरा कोई इतिहास नहीं
जवाब देंहटाएंइतिहास हो जाऊँगा उस दिन, जिस दिन न बचेगा रास्ता कोई।
बहुत उम्दा..... सादा बयानी भी कितनी प्रभावशाली हो सकती है यह इस रचना में निहित है>>>>>