शनिवार, 31 मई 2014

विविधा

(1)
स्थगित किया चूमना हमने
टूटने तक खिंच चुकी धड़कन
न झेल पाती नम दहकन!

(2)
हवन परोपकार के
तुम कुंड मैं समिधा
दहन अगन जलन धूम संसार के।

(3)
उपमा
रूपक नहीं आते मुझे
न जानता हूँ चाँद तारों की ऊँचाइयों को

बस तुम्हारी चाय के साथ पारले जी होना चाहता हूँ।  

(4)
आँसू काजल से लिखी पाती
प्रतिशोध वश राख हुई
पत्थर पर रह गया तुम्हारा नाम भीगा।


(5)
पहले ग्रीटिंग कार्ड में सूखी पंखुड़ियाँ
टूट कर बिखर गईं रसोई में
तुमने सराहा मेरा जूड़े में लगाना घेंवड़े का फूल।   

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~गिरिजेश राव~

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