बनाये नहीं जाते
दिये नहीं जाते
लिये नहीं जाते
कुछ अधिकार
बस होते हैं
होते हैं कि
उनके होने से
सब होते हैं
बनाने वाले
देने वाले
लेने वाले
वे ऐसे जुड़ते हैं
क्षिति - भोजन
जल - प्यास
पावक - पेट
गगन - एकांत
समीर - साँस
करते व्यापार
छीनना चाहते हो
वे अधिकार
कैसे छीनोगे उन्हें?
जो
बनाये नहीं गये
दिये नहीं गये
लिये नहीं गये
वे थे, हैं, रहेंगे
कि तुम्हारा होना भी
उनसे ही है
खुद को खुद से
छीन कर तो देखो
मिटा कर तो देखो
दबंगई गिरहकटी
कुछ मामलों में नहीं चलते
जैसे:
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
भोजन, प्यास, पेट, एकांत, साँस
दिये नहीं जाते
लिये नहीं जाते
कुछ अधिकार
बस होते हैं
होते हैं कि
उनके होने से
सब होते हैं
बनाने वाले
देने वाले
लेने वाले
वे ऐसे जुड़ते हैं
क्षिति - भोजन
जल - प्यास
पावक - पेट
गगन - एकांत
समीर - साँस
करते व्यापार
छीनना चाहते हो
वे अधिकार
कैसे छीनोगे उन्हें?
जो
बनाये नहीं गये
दिये नहीं गये
लिये नहीं गये
वे थे, हैं, रहेंगे
कि तुम्हारा होना भी
उनसे ही है
खुद को खुद से
छीन कर तो देखो
मिटा कर तो देखो
दबंगई गिरहकटी
कुछ मामलों में नहीं चलते
जैसे:
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
भोजन, प्यास, पेट, एकांत, साँस
क्या बात कही है आचार्य जी!!
जवाब देंहटाएंये तो जीने की अनिवार्य शर्तें हैं -इस पर कोई दो मत नही हो सकते .
जवाब देंहटाएंकुछ अधिकार बस होते हैं।
जवाब देंहटाएंनैसर्गिकता का भाव है अधिकार, प्राप्य और प्राप्ति में।
जवाब देंहटाएंएकान्त भी ? :)
जवाब देंहटाएंएकान्त तो छीना जा सकता है !
वैसे इस एक शब्द ने कविता बदल दी.
यहाँ आना सुखी हो जाना है, बहुत सुखी :)
जवाब देंहटाएंक्या बात है। लाजवाब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल दबंगई गिरहकटी कुछ मामलों में नहीं चलते ।
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