रात नम तुम्हारे
होठों की तरह
लाज की बात है आँखें
मूँदनी हैं
मुझे चूमनी हैं
साँसें अंधकार में
ऊष्ण उड़ेगी निविड़ में
प्रीत सन
प्रात कसे जग हमें जो
शुचिता पर
साखी होंगी बूँदें
टँगी दूब पर!
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- गिरिजेश राव 201310302254
जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।