बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

साखी

रात नम तुम्हारे होठों की तरह
लाज की बात है आँखें मूँदनी हैं
मुझे चूमनी हैं साँसें अंधकार में
ऊष्ण उड़ेगी निविड़ में प्रीत सन
प्रात कसे जग हमें जो शुचिता पर
साखी होंगी बूँदें टँगी दूब पर!
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- गिरिजेश राव 201310302254 

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

सूर्या सोम

भोर दिखा
भर निशा जागा सोम
मुस्कुराता
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2013-10-25-1090 - Copy
अवगुंठन जगी साँवरी सूर्या साथ
चमक रही माँग रोली नवविवाह
प्रात पूर्ण उद्योग
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2013-10-25-1093
प्रस्फुर उल्लास बदन वदन
उमंग साँवरी देह हिरण्य द्युति
संगति साजन उपहार कंचन कंचन
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द्वितीयोनास्ति प्रेम समर्पण
सोम दृग चन्द्रिकामृत अंग अंग
सूर्या गौर तेजस्विनी निज हिरण्य समो     

शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

उसकी श्रुतियाँ

उसने कहा -
तुम अभिशप्त हो
भ्रष्ट आत्मा हो

उस क्षण मुक्त हुआ
उसके रँगे काषाय को ओढ़
यायावर निकल पड़ा

प्रेम यदि मिलना मिलाना है
तो उसका कहना अभिशाप नहीं

प्रेम यदि एकांत है
तो उसका कहना भ्रष्टाचरण नहीं

यही सोच मैं द्वैत हुआ
उसे क्षमा किया

और वह पुन: मिली
कहा - तुम्हें सुनना है

ये जो शब्द हैं
मेरे मौन हैं

उसकी श्रुतियाँ हैं   

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

बात कीजिये हुजूर

अन्न की बात कीजिये हुजूर
देवालय की अक्षत हो
या शौचालय की मल मल
उसे तो होना है जरूर
रोटी की बात कीजिये हुजूर
बहुत पहले ही उतर चुका
ऐसे नारों का शुरूर
घट्टा पड़ चुकी हैं आदतें
हँसते हैं बन के चूतिया
हम जाहिल मगरूर
फिर भी जलन नहीं होती सहन
होती है जो पेट में मजबूर
लगने पर देख लेंगे
पहले लगाइये तो हुजूर
अन्न की बात कीजिये हुजूर!

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

शरद की प्रात

शरद की प्रात शीतल ओसमयी
चूमा है जगते ही बासी मुँह
धरा ने निठुराये आकाश को

ठिठुरन है या है तन में झुरझुरी
प्रेम बैठता पगता भीनता सा
उड़ेलता कोई माटी के नवघट इक्षुरस

मिचमिची आँखें बदनपीर राम राम
टूटती अँगड़ाइयाँ सन अंग अंग
लिप्त हैं दोनों आदिम आराधना में