बुधवार, 2 मई 2012

काल की उछाल


सीलिंग पर चिपकाये स्फुरदीप्त तारागण निहारिकायें 
प्रकाश बुझा और तन गया आकाश बेडरूम में 
सोचा कि बताऊँ बच्चे को अनंत की कुछ बातें 
लेकिन सो गया था वह गहरी नींद में।

गर्मियों की खुली छत, हवा मद्धिम
तना चम चम अद्भुत अन्हरिया आसमान 
पिता के साथ लेटना छत पर पूछने को ढेरों सवाल 
वह बताते और मैं सुनता, न थकता और न सोता 
जब तक कि वह 'आदेश' न दें। 

काल की उछाल एक पीढ़ी में ही कितनी बदल जाती है!

6 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चे ने जब घर में कृत्रिम तारे लगवाये तो अपने घर की छत याद आ गयी।

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  2. aur log kehte hain waqt badlega.. wo to badal hi raha hai.
    sunder prastuti.

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  3. काल की उछाल में न जाने क्या -क्या बदला है .!
    ' ग्लोइंग स्टार्स 'अच्छे तो लगते हैं'!

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  4. काल का पहिया, घूमे भैया ... आज की पीढी सितारे मुट्ठी में बान्धना जानती है। :)

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