होठों की नमी के पीछे
दहकती पास प्यास
रेख रेख देख सकता हूँ
छू नहीं सकता - होठ सूखते हैं।
इतने निकट होना कि
साँसें दूर धकेलने लगें
और आँखें जीभ को सोख लें
कह नहीं सकता - होठ फटते हैं।
हवाओं को सहलाता हूँ
अंगुलियों से सुलझाता हूँ
चमकते चन्द रजत गुच्छे
बह नहीं सकता - आँसू रुकते हैं।
बुनता हूँ धागे जो अदृश्य हैं
कि पहना दूँ दिगम्बर तन को
जलती चाँदनी जलन से रूप पर
सह नहीं सकता - भाव बिंधते हैं।
न, वहीं रहो, दूरियाँ सुन्दर हैं
आज की रात बस सुन्दर है
निशा सहमेगी, भटकेगी यामिनी,
पर्याय हो रजनी करेगी राहजनी
कोई चिंता नहीं, दुख नहीं, सुख नहीं
लुटने लुटाने का भय नहीं
इतनी उठान कि उड़ना चाहता हूँ
इतनी थकान कि मरना चाहता हूँ।
आज की रात मैं बच्चे सा सोना चाहता हूँ
कुछ नहीं, खोया कभी नहीं
आज की रात तुम्हें फिर पाना चाहता हूँ।
दहकती पास प्यास
रेख रेख देख सकता हूँ
छू नहीं सकता - होठ सूखते हैं।
इतने निकट होना कि
साँसें दूर धकेलने लगें
और आँखें जीभ को सोख लें
कह नहीं सकता - होठ फटते हैं।
हवाओं को सहलाता हूँ
अंगुलियों से सुलझाता हूँ
चमकते चन्द रजत गुच्छे
बह नहीं सकता - आँसू रुकते हैं।
बुनता हूँ धागे जो अदृश्य हैं
कि पहना दूँ दिगम्बर तन को
जलती चाँदनी जलन से रूप पर
सह नहीं सकता - भाव बिंधते हैं।
न, वहीं रहो, दूरियाँ सुन्दर हैं
आज की रात बस सुन्दर है
निशा सहमेगी, भटकेगी यामिनी,
पर्याय हो रजनी करेगी राहजनी
कोई चिंता नहीं, दुख नहीं, सुख नहीं
लुटने लुटाने का भय नहीं
इतनी उठान कि उड़ना चाहता हूँ
इतनी थकान कि मरना चाहता हूँ।
आज की रात मैं बच्चे सा सोना चाहता हूँ
कुछ नहीं, खोया कभी नहीं
आज की रात तुम्हें फिर पाना चाहता हूँ।
आमीन!
जवाब देंहटाएंफिर!
जवाब देंहटाएंइतनी उठान कि उड़ना चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंइतनी थकान कि मरना चाहता हूँ।
आज की रात मैं बच्चे सा सोना चाहता हूँ
कुछ नहीं, खोया कभी नहीं
आज की रात मैं तुम्हें फिर पाना चाहता हूँ।
सुन्दर भाव!
अरे यार सुबह हो गई.. :)
जवाब देंहटाएंबढिया. वैसे ये फोटो किरा नाइटली की है क्या?
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द और सुन्दर भावों से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें
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