शनिवार, 10 सितंबर 2011

बाज आओ।



भभका ढेबरा जवानी के खेल
है पेंदी में तेल, पर न बाती से मेल
बाज आओ।

बचे केशों में लगा लिये छिपा लिये
न लगे सफेद दाढ़ी, मुँह कालिख लगे
बाज आओ।

बेल्ट तो चढ़ा लिये, सीना फुला लिये
सिमट जाये उठान तोंद नीचे झिझक
बाज आओ।

चाँद चमकते रहेंगे पर न घूरो अब
निकल आया चाँद मुँह लटका झटक
बाज आओ।

लिहाज-ए-उमर रोमियो और कुत्ते
हसीनों की गलियाँ करतीं फरक
बाज आओ।

कृत्रिम साँस न आखिरी चुम्बन
होगा हार्ट फेल, पथ किनारे मरोगे
बाज आओ।









8 टिप्‍पणियां:

  1. ये बाज आनेवाले नहीं हैं . जिन-जिन चीजों से बाज आने के लिए कह रहे हैं , सब जान-बूझकर अपनाई हैं . बाज आ गए तो बचेगा क्या .

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  2. महिलाओं को टहलता देख बंडी और लुंगी पहन अपनी बाइक को टहलाने निकल पड़ने वाले एक सज्जन हैं। उस समय उनकी तोंद का नजारा अलग ही होता है। रुकिये चित्र बनाने की कोशिश करता हूँ।

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  3. ई चित्तर कैसे बनाते हैं..? बड़ा बढ़िया बन गया है...! काजल कुमार देखेंगे तो खुश होंगे। कविताई में जो कमी थी पूरी हो गई है।

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  4. baiya ye bhi bta dete...... kisko baaz aane ke liye kah rahe ho..... bakiya samjhdaar ko ishara bahut...


    baaz aao bhai logon
    बेल्ट तो चढ़ा लिये, सीना फुला लिये
    सिमट जाये उठान तोंद नीचे झिझक
    baaz aao

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