न हिज़ाब पर यूँ अनख मेरे महबूब!
जतन से ओढ़ी है कि तेरी नज़र न लगे।
नज़र लग गई तो फिर उतरेगी नहीं
लगी जो कभी वो कहाँ उतरी आज तक?
न कहो अब लगने लगाने को बचा कहाँ?
हुई हैं खाली आँखें ढेर सा टपका कर।
ये इश्कोमुहब्बत जैसे दिललगा सूरन
लगे, न लगे और सवाद का पता ही नहीं।
चलो धीरे, बुझती हैं आहट के झोंको से
हैं बत्तियाँ नाज़ुक तुम्हारी माशूक नहीं।
जो आँख फेरी है तो वैसे रह भी पाओगे?
ग़ुम सदा कान में और रुख पलट जायेगा।
जतन से ओढ़ी है कि तेरी नज़र न लगे।
नज़र लग गई तो फिर उतरेगी नहीं
लगी जो कभी वो कहाँ उतरी आज तक?
न कहो अब लगने लगाने को बचा कहाँ?
हुई हैं खाली आँखें ढेर सा टपका कर।
ये इश्कोमुहब्बत जैसे दिललगा सूरन
लगे, न लगे और सवाद का पता ही नहीं।
चलो धीरे, बुझती हैं आहट के झोंको से
हैं बत्तियाँ नाज़ुक तुम्हारी माशूक नहीं।
जो आँख फेरी है तो वैसे रह भी पाओगे?
ग़ुम सदा कान में और रुख पलट जायेगा।
मेरी कुछ हरकतें जो हैं तुम्हें नापसन्द,
सुना देना उन्हें सज़दे में, वो बुरा न मानेगा।
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लाजवाब रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमेरी कुछ हरकतें जो हैं तुम्हें नापसन्द,
जवाब देंहटाएंसुना देना उन्हें सज़दे में, वो बुरा न मानेगा।
Sundar Prastuti
--Mayank
ek shabd..........
जवाब देंहटाएंbehtreen.
kitne chakkar chala rakhe hain apne..
जवाब देंहटाएं:)
@नज़र लग गई तो फिर उतरेगी नहीं
जवाब देंहटाएंलगी जो कभी वो कहाँ उतरी आज तक?
....यही तो खास बात है नज़र की.
जो उतर गई. वो लगी ही कहाँ थी?
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