मंगलवार, 12 मई 2009

प्रार्थना - ब्लॉग पर मेरी पहली कविता

धूप!
आओ,अंधकार मन गहन कूप
फैला शीतल तम ।मृत्यु प्रहर
भेद आओ। किरणों के पाखी प्रखर
कलरव प्रकाश गह्वर गह्वर
कर जाओ विश्वास सबल ।
तिमिर प्रबल माया कुहर
हो छिन्न भिन्न। सत्त्वर अनूप
आओ। अंधकार मन गहन कूप
भेद कर आओ धूप।

12 टिप्‍पणियां:

  1. गिरिजेश जी,
    आपकी प्रार्थना अच्छी लगी।
    तिमिर प्रबल माया कुहर
    हो छिन्न भिन्न। सत्त्वर अनूप
    आओ। अंधकार मन गहन कूप
    भेद कर आओ धूप।
    सुन्दर शब्द संयोजन एवं अभिव्यक्ति
    सादर
    अमित

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  2. आपकी प्रार्थना सफल है........धुप तो प्रकाश है.....जरूर आना चाहिए..
    स्वागत है आपका

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  3. भैया, लगता है अब आप आलस्य त्याग कर ब्लॉग मण्डली में शामिल होने के लिए जाग खड़े हुए हैं। बधाई।

    मुझे कविताएं कम ही समझ में आती हैं। लेकिन इसे पढ़कर सहसा वाह-वाह निकल ग्या।

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  4. good effort,nature loving thought ,giving way to almost must and most needed sun rays for life.congrats.
    Dr.bhoopendra

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  5. ishwar prarthna ke saath shuru hua aapka blog , aapko blog jagat men nai uplabdhiyan pradhan kare, blog jagat men swagat hai.

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  6. आओ। अंधकार मन गहन कूप
    भेद कर आओ धूप।

    आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी

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  7. हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
    इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

    कृपया अधूरे व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें।
    मेरा पता है:-
    www.samwaadghar.blogspot.com
    शुभकामनाओं सहित
    संजय ग्रोवर

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  8. prarthna ki kavita se aapka shubhagman swagat yogya hai.....wish you all the best

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  9. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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