बुधवार, 7 सितंबर 2016

नयन माँ के

नयन माँ के
हर पल थामे
भीत,
लिखा जिस पर
पिता का जाना -
अदृश्य मसि।

अंधेरे से भी
झाँकती है
हार,
पीर
दो थके नयनों की।

सपाट मुख
स्थायी भाव
विवर्ण हम
सो नहीं पाते
रो नहीं पाते।

प्रात: दिलासा देती है माँ
जाने दो, ठीक ही हुआ
मत सोचो..

और मुझे पता चलता है
अमा की रात
ओस झुलसी आग
कैसे शीतल होती है।

ताकने लगता हूँ आकाश
कि
उमड़े जो, थमे रहें
छिप जांय...
... माँ जाने कौन सा नया बोझ
नई हार
और पिरो लेगी आँखों में
बहें तो बहें
बस दिखें न।

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस कविता में व्यक्त भावनाओं को बस ह्रदय से अनुभव करने का प्रयास कर रहा हूँ. अम्मा के गीत सुने हैं मैंने, उनका विलाप असह्य है मेरे लिये!

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  2. दिल को सीधे टच करती है रचना ... पल
    पल माँ के एहसास को जीते शब्द ...

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  3. दिल को छू जाने वाली पंक्तियाँ है।और फिर माँ शब्द ही जिस रचना, पंक्ति में आ जाये तो उसकी सुंदरता की कलपना नही की जा सकती है।आकर्षक,असरदार और प्रभावशाली लेखन है।शब्दों का सटीक और उचित स्थान पर प्रयोग होने से पंक्तियों में आये निखार को महसूस किया जा सकता है।

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