मंगलवार, 10 नवंबर 2015

आओ राम!

आओ राम!
कौशल्याओं की कुशल हो आओ,
विश्वमित्रों के सम्बल हो आओ,
ताड़काओं के तारक बन आओ,
अहल्याओं के हल हो आओ,
मन सीता के कृषक वर आओ,
शबरी की अगोर मिटे, आओ,
शरभंग पीर शमन को आओ,
शोषक दूषण दमन को आओ,
अगस्त्यों के उद्योग बन आओ,
वानर भल्लूक सहयोग बन आओ,
राक्षस उद्दंड दहनहनु आओ,
नगर गाँव वनप्रांत अमा,
द्वादश आदित्य सहज सँग आओ।
कसौटियों पर कसे सनातन,
हिरण्यदीठ लीक सम आओ॥ 

रविवार, 7 जून 2015

रसोई में

रसोई में
तवे पर पकता फूलता पिसान
फूटती भूमा गन्ध स्वेद सन
ऊष्म डी एन ए लावा तप्त
हहरता सागर ममत्त्व
बड़वानल सृजन भूख
गढ़ती जीवन दो जून
स्त्री दिन प्रति दिन
रसोई में!
~ गिरिजेश राव

रविवार, 19 अप्रैल 2015

कश्मीर: फोटो और हाय क्यूँ

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क से कश्मीर
खाये पिये पत्थर
गैस के आँसू
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बेरोजगारी
ब्रांडेड जींस पैंट
कश्मीरी युवा
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पाथर मार
इलहाम बचाव
काफिर फौजी
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दुन्या परेशाँ
दीन खतरनाक
शांति का नाम
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रक्त से सना
सड़क का पत्थर
हू अकबर
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मारते हुये
भयभीत हैं हम
पत्थरसिर
 

रविवार, 12 अप्रैल 2015

भइया बिदेस

भइया गये परदेस
भउजी ने रख छोड़ी है उनकी
मैली बंडी अलमारी में एक।


नज़र भर टेर
मइया बबुना की लगाती रहती हैं टेक
बबुवा भरते हैं अब धीरे धीरे डेग।

 
भउजी काम धाम के बीच
रह रह आती हैं कोठरी खोल
अलमारी में गमकता है बलमुआ बिदेस। 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

गंगे! तव तीर

गंगे!
तव तीर
सूर्योदय साथ
सिमटा सारा आकाश
आजानुबाहु मैं पसार -


मैं ही ऋतु ऋत
मार्तंड मैं आदि सूक्त
परम पूत
शिव शिवा का पहला द्यूत
अर्यमा मीत
प्रथम प्रीत
जीवन शस्य
उमस
मैं विवश
दुर्धर्ष पर्जन्य
वत्सल सौजन्य  
तड़ित झंझा इन्द्रवज्रा
गैरिक प्रात संझा 
कोमल रागिनी छ्न्द
विहारिणी मधुर मन्द
सिहरन मैं शिशिर वातास
मैं बसंत का पहला प्रसाद।


गंगे!
भर नयन नीर
सब मैं
सब तू
तव तीर।

गुरुवार, 12 मार्च 2015

तुम जो नहीं

ढूँढ़ता हूँ कैमरे अंतर्जाल
जो उतार सकें निखार के साथ
मेरे चेहरे की हर रेखा हर भाव
उतार चढ़ाव झुर्रियाँ खिंचाव
दीप्त प्रकाश।

युग बीते मिले अन्धकार
तुम्हारी अंगुलियाँ अद्भुत चित्रकार
गढ़ती थीं निज मनोलोक
मेरे विस्तार।
 
तुम जो नहीं
ढूँढ़ता हूँ ऐसे निर्जीव
कर सकें जो मुझे सजीव
यह नैतिक अर्जित ज्ञान प्रकाश
हम तो थे अनैतिक अन्हार!      

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

सी!

छन छपी है धूप बगीची बीच सुबह सुबह
निफूले हरसिंगार तले तुम्हारी हँसी सी!
टँगी ओस अदद एक शमी की झुकी पत्ती पर 
सद्य:स्नात केश बूँद अकेली नयनाँ बसी सी!
उजली जमीं फेंक गया कोई लाल फूल कनैल तले
टोने टोटके वारी सब गोरे हाथ मेंहदी कसी सी