रसोई में
तवे पर पकता फूलता पिसान
फूटती भूमा गन्ध स्वेद सन
ऊष्म डी एन ए लावा तप्त
हहरता सागर ममत्त्व
बड़वानल सृजन भूख
गढ़ती जीवन दो जून
स्त्री दिन प्रति दिन
रसोई में!
तवे पर पकता फूलता पिसान
फूटती भूमा गन्ध स्वेद सन
ऊष्म डी एन ए लावा तप्त
हहरता सागर ममत्त्व
बड़वानल सृजन भूख
गढ़ती जीवन दो जून
स्त्री दिन प्रति दिन
रसोई में!
~ गिरिजेश राव
उम्दा ख्याल
जवाब देंहटाएंसोंधी सोंधी खुशबू फैलती रसोई से ... और गढ़ जाती है जिन्दगी स्वतः ही ...
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंवाह ! बढिया चित्र !
जवाब देंहटाएंगढती जीवन
जवाब देंहटाएं....
रसोई में!