शनिवार, 6 जुलाई 2013

कितना कमाते हो?

मैं जानता हूँ मित्र!
असमर्थ हूँ, व्यर्थ हूँ,
कुछ नहीं कर सकता
यह तंत्र बदलने को

लेकिन अच्छा लगता है जब
मेरी टेबल पर आश्वस्ति पाते हो

उपलब्धि लगती है कि
तुम्हारे चेहरे से सलवटें मिटती हैं
पसीना पोंछते नहीं
मुस्कुराते हुये जाते हो

मन ही मन उत्तर देता हूँ
सहस्र जिह्वा एक प्रश्न का
"कितना कमाते हो?" 

9 टिप्‍पणियां:

  1. 'उपलब्धि लगती है कि
    तुम्हारे चेहरे से सलवटें मिटती हैं''

    यही कमाई तो संतुष्टि देती है.
    यहाँ अर्थ व्यर्थ है.

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।

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  3. .
    .
    .
    बहुत बहुत कमाते हो, वह जो अनमोल है !

    यह कमाना इसी तरह जारी रहे, कविश्रेष्ठ...


    ...

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  4. किसी की मुस्कराहट,
    पसीने का पोछना,
    साँसों का सम्हलना,
    बस इतना ही कमाते हैं,
    शेष रास नहीं आते हैं।

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  5. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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