जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
रविवार, 22 अप्रैल 2012
रूप और प्रात, दुपहर, साँझ, रात
रविवार, 15 अप्रैल 2012
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
कितना बड़ा??
जनवरी से लेकर दिसम्बर तक
छत और दीवारें मय तीन गुम्बद ज़िन्दा हैं।
12 बजे से लेकर 12 बजे तक ज़िन्दा हैं,
मसें भीगती जवानी से लेकर हँसिया हथौड़ा बुढ़ाई तक जिन्दा हैं,
विभाग की राजनीति से लेकर दीवार की क्रांति तक जिन्दा हैं,
सँड़ास के वेग से प्रोस्टेट के संकोच तक जिन्दा हैं,
महीने के उन खास दिनों से लेकर निश्चिंत मुक्ति तक ज़िन्दा हैं।
मुझे आश्चर्य होता है कि बिखरी जीवन्तता अथाह
बहती है नालों में, बजबजाती है नालियों में -
फिर भी!
फिर भी!!
यह देश मरता क्यों जा रहा है?
कितना बड़ा मकबरा चाहिये -
इन जीवंत आत्माओं को दफनाने को क़यामत तक?
कितना बड़ा??
रविवार, 8 अप्रैल 2012
एक काम रचना i.e. An Erotica
अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में एक काम रचना (erotica) प्रस्तुत है। आप को यह बताना कि कौन सी मूल है और कौन सी अनुवाद? अंग्रेजी और हिन्दी के क्रम बारी बारी से उलट दिये हैं ताकि मन किसी एक भाषा के पक्ष में केवल क्रम के कारण न हो जाय!
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चूमा है जब भी मैंने तुम्हारे अधरों को Whenever I have kissed your lips
I have sensed openings somewhere else तुम्हें कहीं और खुलते पाया है
तुम्हारे निमंत्रित करते सुन्दर उरोज your inviting beautiful breasts
hide behind long black hair छिप जाते हैं प्रलम्ब कृष्ण केशराशि के पीछे
कई बार मेरी आँखों ने उन्हें सहलाया है many a times my eyes have caressed them.
many a times you have closed yourself कई बार तुमने स्वयं को गोपन किया है -
मेरी गोद में, मेरी बाहों में in my bosom, my arms
but never opened yourself लेकिन स्वयं नहीं हुई अनावृत्त कभी
मैं हमेशा चकित होता हूँ I marvel always
lips are open, breasts are open होठ खुले हैं, स्तन खुले हैं
यहाँ तक कि जघनस्थल भी है अनावृत्त even thighs are open
but you remain closed किंतु तुम बनी रही हो गोपन
विचित्र बात! शरीर अनावृत है queer ! the body is open
and the mind is closed. और मन गोपन है।
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चित्रों पर उनके फोटोग्राफर का कॉपीराइट है। इन पर न तो कोई मेरा अधिकार है और न ही स्वामित्त्व। ये यहाँ केवल रचना को सवर्णी रूप देने के लिये प्रयुक्त किये गये हैं।
शनिवार, 7 अप्रैल 2012
मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
घन आये इस रात सुहावन
घन आये इस रात सुहावन,
मन रे कोई गीत रचो
रीति नहीं अगीति सही,
सावन का संगीत रचो।
क्षिति जल पावक गगन सब रूठे
पवन झँकोरे गाछ गज ठूँठे
देह थकित दाह ज्वर छ्न छ्न,
धावन पग पथ साथ गहो
थोड़े थोड़े पास रहो।
सूखा पड़ा टिटिहरी दुखिया
कोस थकी निरर्थक मुनियाँ
बच्चे बढ़ते अंडज चिक चिक,
उड़ने को गम्भीर सुरों!
झंझ मृदंग उठान वरो।
करुणा उगलें तिमिर लहरियाँ
आतप तप कुम्हलाई बगियाँ
प्रार्थना के फूल लोप फिर,
अँसुअन सीझी दीठ बचो
सावन का संगीत रचो।
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