सोमवार, 1 अगस्त 2011

कसाईखाने में कंडोलेन्स

कसाईखाने में कंडोलेंस है।
कोई खस्सी नहीं,
एक चिकवा हलाल हुआ है।

बात बस इतनी थी
झटका और हलाल चिकवों में
बहस हुई - झटका अच्छा कि हलाल?
बहस से तू तू मैं मैं
तू तू मैं मैं से माँ बहन
माँ बहन से पटका पटकी
और उसके बाद
हलाल वाला हलाल हो गया।

झटकासिंह ने घूम घूम कर
सबको सफाई दी,
"उसे मारते हुये वे वाहियात कलमे भी पढ़े
जो इतने दिनों सुनते सुनते
हो गये थे मुझे याद।
मैंने उसे झटके से नहीं
हलाल कर मारा
जिबह किया। 
उसकी आस्था का खयाल रखा 
भले मेरी आस्था खंडित हुई। 
यही तो भाईचारा है
यही इंसानियत है!"
और 
इंसानियत की कदर के कारण 
उसे जमानत मिल गई।  

खस्सियों ने आयोजित की 
एक शोकसभा। 
"कितना मासूम और पाक लगता था!
हलाल अली।
उसे यूँ मार कर झटकासिंह ने 
इंसानियत को शर्मसार किया।" 
थू थू किया
सारे खस्सियों ने एक साथ।  
मरियल सी आवाज में
एक दुबला खस्सी बोला,  
"हलाल अली हो या झटकासिंह 
हमें तो मारते ही थे।
हमें तो मारते ही हैं।        
हमें तो मरना ही है।"
खड़ा हुआ एक खस्सी
दिव्य तेजधर
सुमुख और सुन्दर,
"कुफ्र की बातें न करो।
हमें तो मरना ही है
हम बने ही इस लिये हैं।
कंडोलेंस का दस्तूर तक नहीं
हमारे लिये।
किंतु सोचो जरा 
क्या हलालअली को ऐसे मरना था?
जुटो सभीएक जगह!
हलालअली के लिये
हम मौन रखें।"  
मरियल खस्सी ने
अपनी बात पुख्ता करने की
एक बार फिर कोशिश की।
लेकिन
चिल्ला उठे सभी खस्सी एक साथ -
कंडोलेन्स होना ही चाहिये
यही पशुता है।
और फिर हो गये लीन
मौनमुद्रा में।

जमानत मिलने की खुशी में झटकासिंह
ले गया दावतनामे को एक खस्सी अपने घर
जो था दिव्य तेजधर, सुमुख और सुन्दर।
खस्सियों ने मौन नहीं तोड़ा।
इन्सानियत और पशुता के दस्तूर जारी हैं
कसाईखाने में कंडोलेन्स जारी है।
     

3 टिप्‍पणियां:

  1. जमानत मिलने की खुशी में झटकासिंह
    ले गया दावतनामे को एक खस्सी अपने घर
    जो था दिव्य तेजधर, सुमुख और सुन्दर।
    खस्सियों ने मौन नहीं तोड़ा।
    इन्सानियत और पशुता के दस्तूर जारी हैं
    कसाईखाने में कंडोलेन्स जारी है।
    बहुत खूब !
    दिल और दिमाग को छू जाने वाली बौद्धिक प्रस्तुति.

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  2. कमाल का एक्सप्रेशन है आपका - फैन शिप की डिग्री बढती जा रही है .. :)

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