शनिवार, 23 जुलाई 2011

बोलऽ काकी! का करबू?

आँखि से पानी काढ़े के?
तोहरे घुघटा के आड़े से।
पोखरा परधानी खूब खोनवलें 
हराम के पइसा खूब बनवलें 
बासमती के माड़ पसइबू कि
आपन दस्खत खुदे बनइबू? 
बोलऽ काकी! का करबू? 


सावन में बा कथ्था बइठल
बत्ता बत्ता बथ्था अँइठल। 
मूड़ मरोर के पुन्न कमइहें
सुई दवाई गोली सब अनिहें 
गैस जरा के चिखना तरबू कि 
कक्का के मुँह झौंसा करबू? 
बोलऽ काकी! का करबू? 


छम्मकछल्लो गाड़ी चमके 
बड़ी सहर के साड़ी दमके। 
एक के तीन रजिस्टर में चढ़ि गे 
हँसे मँगरुआ बिधना पढ़ि के 
मुरगा दारू अइँठि भँजइबू कि  
धनिया के पेट से बिपदा हरबू?
बोलऽ काकी! का करबू?  

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