बुधवार, 30 सितंबर 2009

देहात - साँझ, रात, भिनसार

साँझ
नहीं ठाँव
तारों के पाँव।


पीपल
पल पल
जुगनू द्ल।


गीत
सुने माय
मुँह बाय।


पावर
रोशनी कट
ढेबरी सरपट।


चाँद
फेंक प्रकाश
लानटेन भँड़ास।


मच्छर
गुमधुम
लोग सुमसुम।


श्वान
संभोग दल
रव बल छल।


फूल
पौधों के शूल
रजनी दुकूल।




ओस
रही कोस
बारिश भरोस।


....
....
बयार
हरसिंगार
धरती छतनार।










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ये हिमांशु जी की टोकारी पर:

सेंक
रोटी फेंक
चूल्हा टेक।
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सोमवार, 21 सितंबर 2009

अन्ना ! नहीं तोड़ा जाता ।

तुम्हारी उंगली पकड़ 
यहाँ मैंने चलना सीखा ।
पैर कहाँ रखें कैसे रखें 
तुमसे सीखा ।
तुमसे हुए जाने कितने सम्वाद 
सुलझाते रहे गुत्थियों को।


अचानक इतने चुप क्यों हो गए?
चुप्पी भी ऐसी कि कुरेदने से न टूटे !
....
मौन तुम्हारा अपना वरण है।
मुझे उस पर कुछ नहीं कहना ।
लेकिन मैं अब किसे ढूढूँ 
अपना मौन तोड़ने को ?
.....
भीतर का हाहाकारी मौन 
जिस किसी के आगे नहीं तोड़ा जाता
अन्ना ! नहीं तोड़ा जाता।

रविवार, 6 सितंबर 2009

पुरानी डायरी से - 2

.... अपनी पुरानी डायरी आप के सामने खोलना प्रारम्भ कर रहा हूँ - पन्ने दर पन्ने , बेतरतीब । डायरी रोजनामचा टाइप नहीं बल्कि सँभाल कर छिपा कर किए प्रेम की तरह - जब मन आया लिख दिए, जब मन आया चूमने चल दिए, बहाने चाहे जो बनाने पड़ें। 
नई जवानी में बचपना अभी शेष है लेकिन आश सी है कि इन पन्नों को भी उतना ही प्यार दुलार मिलेगा।
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इसके पहले पुरानी डायरी से - 1


6 अप्रैल 1993, समय: रात्रि 1110                                'नश्वर'


हाँ यह शरीर नश्वर !
पूजित पहचान अमर
हाँ यह शरीर नश्वर।


स्वागत तिरस्कार
सौन्दर्य अभिसार
जीवंत काम अध्वर
हाँ यह शरीर नश्वर।


नीड़ का निर्माण
वेदना निर्वाण
उद्घोष प्राण सस्वर
हाँ यह शरीर नश्वर।