जाने कहाँ से आ गई है
आलमारी में बन्द उस पुस्तक
'एलर्जी से कैसे बचें' पर धूल?
डर से पुस्तक नहीं छूता
कहीं धूल वाली एलर्जी उपट न जाय।
अगर एलर्जी से बचना है
तो रोज पुस्तक पढ़नी होगी।
...मैंने तो समझ लिया
आप ?
जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
शनिवार, 29 अगस्त 2009
शनिवार, 22 अगस्त 2009
सुखरोग
...लीवर पर चढ़ी चर्बी
धमनियों में चिपकी चर्बी
कोलेस्ट्रॉल ने खून किया गाढ़ा . .
चेक अप की मेरी रिपोर्टें यही कहती हैं।
डाक्टर से पूछा,
"मीठा नहीं खाता
तला नहीं खाता
घी देखे जमाना हो गया
बीवी बघार में तेल नहीं पानी डालती है।
भूख से कम ही खाता हूँ।
उमर भी अभी क्या हुई !
डाक्टर ऐसा मेरे साथ कैसे हो गया?
ऐसा केस तो मैंने अब तक नहीं देखा।"
डाक्टर ने बताया ,
"तुम्हें सुखरोग हो गया है।
ज़माना बदल चुका है।
कुछ भी करो,
जब तक सही खाओगे नहीं
सही श्रम नहीं करोगे
यह सब बढ़ता ही रहेगा।
केस ऐसा क्यों नहीं देखा?
भारत देश सामने है,
अभी उसकी उमर ही क्या है?
सुखरोग को नया मेडिकल साइंस
'भारत रोग' कहता है।
जांनते हो क्या?"
'सही खाना' और 'सही श्रम'
मैं तो कर लूँगा
लेकिन !
डाक्टर ऐसा जुमला फिर न बोले,
यह कौन सुनिश्चित करेगा?
कैसे सुनिश्चित करेगा?
सुखरोग की दवा कौन करेगा?
सोमवार, 10 अगस्त 2009
जय बंगलादेशी !
फूलों की मत पूछो
पूरा कूड़ेदान सजा कर रखा है।
इधर उधर कहाँ जाते हो?
कहाँ थूकोगे, कहाँ मूतोगे?
देखो, तुम्हारे बिगाड़ने को,
पूरा हिन्दुस्तान बना रक्खा है।
पूरा कूड़ेदान सजा कर रखा है।
इधर उधर कहाँ जाते हो?
कहाँ थूकोगे, कहाँ मूतोगे?
देखो, तुम्हारे बिगाड़ने को,
पूरा हिन्दुस्तान बना रक्खा है।
शनिवार, 8 अगस्त 2009
बेमतलब नहीं है यह !
इन संस्कृत पंक्तियों का अर्थ बताइए।
सुविधा के लिए संधियों को तोड़ दिया गया है:
___________________________
दददो दुद्दा-दुद्-ददि
दददो दुद-दी-आद-दो:
दु-ददम् दददे दुद्दे
दद्- अदद-ददो’द-द:॥
___________________
रविवार, 2 अगस्त 2009
हरी तुम हरो जन की भीर...
"सखी मोरि नींद नसानी हो
पिय को पंथ निहारत सगरी रैना बिहानी हो।
सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो।
अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो।"
करुणा की शुद्धता और अनुभूति की सान्द्रता क्या होती हैं, जानना है तो उपर्युक्त पद गाएँ या वसुन्धरा और कुमार गन्धर्व की इस पद की प्रस्तुति सुनें।
गेय परम्परा द्वारा जन जन को कृष्णमय कर देने वाली मीरा ! पुरुष प्रधान सामंती दौर में भी निष्छल, नि:स्वार्थ प्रेम का अलख जगाती मीरा ! जन की पीर से अपनी पीर को जोड़ती मीरा ! ..
मीरा के न जाने कितने रूप सामने आते हैं। लेकिन सबमें एक बहुत ही सरल भक्त नारी अत्यंत उच्च भावभूमि में घूमती जन की चिंता करती नजर आती है। यह और महत्त्वपूर्ण तब हो जाता है जब हम यह पाते हैं कि अत्यंत गर्वीले राजवंश की वह बहू थीं और सारे बन्धन तोड़ अपने नटनागर के लिए सरेआम नाची थीं।
"हरी तुम हरो जन की भीर
द्रौपदी की लाज राखी तुरत बाढ्यो चीर"
'तुरत' की जगह 'चट' शब्द भी मिलता है। दोनों समानार्थक हैं। प्रसंग है उस समय फैली महामारी का जिससे सभी त्रस्त थे। सामान्यत: लोग इसे दृष्टांत मान कर सरलार्थ कर देते हैं। बात ऐसी नहीं है।
मीरा यहाँ नटनागर को उलाहना दे रही हैं। राजरानी द्रौपदी के लिए इतनी जल्दी और आम जन के लिए सुस्ती? भक्ति और कीर्तन चाहिए तब पिघलोगे? जब कि सारे लोग लुगाई आपदा के कारण त्राण में हैं?
आगे की पंक्तियों:
"भगत कारण रूप नर हरि, धरयो आप समीर
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो, धरयो नाहिन धीर"
में उलाहना और सघन होती है। प्रह्लाद जो कि एक राजकुमार थे, उनके लिए तो धैर्य नहीं दिखाया तुमने? नरसिंह बन गए!
मीरा आगे गजराज का सन्दर्भ दे जैसे अपने कन्हैया को याद दिलाती हैं कि सामान्य पशुओं तक पर तुमने करुणा की है। ये दु:खी जन क्या उनसे भी गए बीते हैं?
"बूड़तो गजराज राख्यो, कियौ बाहर नीर।"
.............
"अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो।
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।"
कुछ करो, तारो, दु:ख हरो नाथ। बिरहिनी ब्याकुल है ! सुध बुध खो बैठी है। मीरा की अपनी पीड़ा और जन की पीड़ा दोनों की अभिव्यक्ति में भावभूमि की कितनी समानता है!
जन पर भीर आ पड़ी है। इस रूप में भी पधारो नाथ, इस पीड़ा के दंश से मुक्ति दो।
कहते हैं प्रार्थना की सान्द्रता से कन्हैया रीझ उठे थे। महामारी का शमन हो गया। भक्त कवियों का यह जनवादी रूप ! मैं तो वारा इन पे।
..............
मन में सुब्बलक्ष्मी का स्वर गूँज रहा है:
"कोई कहियो रे प्रभु आवन की
आवन की मनभावन की
कहियो कहियो कहियो रे प्रभु आवन की"
मैं अब और कुछ नहीं लिख सकता।
शब्दचिह्न :
कुमार गन्धर्व,
जन,
जनवादी,
मीरा,
वसुन्धरा,
सुब्बलक्ष्मी
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