शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

जवनिकायें असित

जवनिकायें असित तनने लगी हैं,
टोपियाँ जाली चुभने लगी हैं।
पड़ी जान सासत में देखो हमारी,
कसाइनें सभत्तर कहने लगी हैं।
उपज की मारी खेतियाँ तुम्हारी,
बस करो बस करो रोने लगी हैं।
जमजम पानी तसबीह जुबानी,
अरे राम, हरे राम जपने लगी हैं।
नीर जिनकी कहानी पत्थर की मारी
कुटनियाँ सयानी बनने लगी हैं!

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