सोमवार, 29 दिसंबर 2014

अगली बार होठ

पिघलन श्लथ देह की
उमड़ी निथरी
निकसी आँखों से
उत्सुक
छू लिया लावा मोम
अँगुरी के पोर आज भी जमी है -
मेरी देह
आसगर्भा है
अगली बार होठ छूने हैं।

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