रविवार, 11 नवंबर 2012

बै मरदवा!

मैं सुन्दर हूँ
किसी का बेटा हूँ।
मैं अमर हूँ
अमृतमना से जुड़ा हूँ।

बोझ खिसकाने को
थोड़ा हाथ लगाने को
मुझे पहचान लेती हैं
अनचिन्ही आँखें -
मैं विश्वस्त हूँ,
मैं समर्थ हूँ।

उन्हें जब होती है
ज़रा सी भारी परेशानी
मुस्कुराती हैं ज़रा सी
परखते हुये मेरी पेशानी -
मैं मूर्त सहयोग हूँ
मैं समस्या का हल हूँ।

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ऐसा बहुत कुछ लिखता
अगर मेरा मित्र न कहता
'बै मरदवा!
ईहो कहे वाली बाति हे?'

लज्जित हूँ अपनी खिसक पर कि
अब भी हैं यूँ ही सब कुछ अध्यानी ही करने वाले।
कन्धे उचका कर पल में भूलने वाले
अब भी हैं कहने वाले -
बै मरदवा!

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